Book Title: Dashvaikalik Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ 5. व्याख्या-ग्रन्थों के सन्दर्भ में : मुनि कैसा हो ? 166 5. वह आकाश जैसा हो: जैसे आकाश निरुपलेप और निरालम्ब होता है, उसी प्रकार मुनि भी माता-पिता आदि में अलिप्त हो और स्वावलम्बी हो / ' 6. वह वृक्ष जैसा हो: जैसे वृक्ष पक्षियों के लिए आधारभूत होता है और छेदन-भेदन या पूजा करने पर समवृत्ति रहता है, उसी प्रकार मुनि भी मोक्ष-फल चाहने वालों के लिए आधारभूत हो और मान-अपमान में सम हो / 7. वह भ्रमर जैसा हो: जैसे भ्रमर अनियत-वृत्ति वाला तथा अपनी भूख, देश और काल को जान कर वर्तने वाला होता है, उसी प्रकार मुनि भी अनियत-वृत्ति वाला तथा अपनी भूख, देश और काल को जानने वाला हो / 3 / / 8. वह मृग जैसा हो: - जैसे मृग सदा उद्विग्न–भयभीत रहता है, उसी प्रकार मुनि भी संसार के भय से सदा उद्विग्न हो, सदा अप्रमत हो / ' 6. वह पृथ्वी जैसा हो: जैसे पृथ्वी सभी स्पर्शो को समभाव से सहती है, उसी प्रकार मुनि भी सभी स्पर्शों को समभाव से सहने वाला हो।५ -१-जिनदास चूर्णि, पृ० 72 / / २-(क) हारिभद्रीय टीका, पत्र 83 / (ख) जिनदास चूर्णि, पृष्ठ 72 / . ३-वही, पृ० 72 : भमरेण व अनियतवत्तिणा भवितव्वं, कहं ? भमरो जहा एस चेव हेट्ठा उदरं देसं कालं च नाऊण चरइ, एवं साहुणावि गोयरचरियादिसु देसं कालं च बाऊण चरियन्वं। ४-वही, पृ० 72 : जहा 'मिगो णिच्चुन्विग्गो तहा णिच्चकालमेव संसारभउन्विग्गेण अप्पमत्तेण भवियव्वं / ... ५-वही, पृ० 72 : . धरणी विव सव्वफासविसहेण साहुणा भवितव्वं।