Book Title: Dashvaikalik Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ 5. व्याख्या-ग्रन्थों के सन्दर्भ में : निक्षेप-पद्धति 187 (8) वातव्य-पद जैसे—वस्त्र निर्मित अश्व आदि / (10) संघात्य-पद जैसे-स्त्रियों की कंचुलियाँ अनेक वस्त्रों के जोड़ से बनती हैं। (11) छेद-पद जैसे—अभ्र-पटल। भाव-पद दो प्रकार का होता है' : (1) अपराघ-पद। (2) नो-अपराध-पद / अपराध-पद छह प्रकार का होता है - (1) इन्द्रिय, (2) विषय, (3) कषाय, (4) परीषह, (5) वेदना, (6) उपसर्ग / ये मोक्ष-मार्ग के विघ्न हैं, इसलिए इन्हें अपराध-पद कहा गया है / नो-अपराध-पद दो प्रकार का होता है : (1) मातृका-पद-मातृका अक्षर अथवा त्रिपदी-उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य / (2) नो-मातृका-पद-जो-मातृका-पद दो प्रकार का होता है। (1) ग्रथित-रचताबद्ध / (2) प्रकीर्णक-कथा, मुक्तक / प्रथित-पद चार प्रकार का होता है : ... (1) गद्य (2) पद्य (3) गेय (4) चौर्ण गद्य : - 'जो मधुर होता है-सूत्र मधुर, अर्थ मधुर और अभिधान मधुर-इस प्रकार तीन रूपों में मधुर होता है, जो सहेतुक होता है, जो सिलसिलेवार ग्रथित-रचित होता है, जो १-जिनदास चूर्णि, पृ० 77 / . २-दशवकालिक नियुक्ति, गाथा 175 / ३-वही, पृ० 77 : ... पतिण्णगं नाम जो पइण्णा कहा कीरइ तं पइण्णगं भण्णइ / ..: ४-वही, गाथा 170 : ___गजं पज्जं गेयं चुण्णं च चउम्विहं तु गहियपयं /