Book Title: Dashvaikalik Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ ८-सभ्यता और संस्कृति दशवकालिक सूत्र का निर्वहण वीर-निर्वाण की पहली शताब्दी के उत्तरार्द्ध में हुओं था। उस पर आचार्य भद्रबाहु कृत 371 गाथाओं वाली नियुक्ति और अगस्त्यसिंह स्थविर (वि० की तीसरी या पाँचवीं शताब्दी) तथा जिनदास महत्तर (वि० की सातवीं शताब्दी) कृत चूर्णियाँ हैं / आचार्व हरिभद्र (वि० की 8 वीं शताब्दी) ने उस पर टीका लिखी। जो तथ्य ‘मूल आगम में थे, उन्हें इस व्याख्याकारों ने अपने-अपने समय के अनुकूल विकसित किया है। प्रस्तुत अध्ययन मूल तथा उक्त व्याख्या-ग्रन्थों के आधार पर लिखा गया है। इससे आगम-कालीन तथा व्याख्या-कालीन सभ्यता तथा संस्कृति पर प्रकाश पड़ता है। गृह : गृह अनेक प्रकार के होते थे। (1) खात-भोहरा। (2) उच्छ्रित–प्रासाद / (3) खात-उच्छित-ऐसा प्रासाद जहाँ भूमि-गृह भी हो / एक खंभे वाले मकान . को प्रासाद कहा जाता था। मकान झरोखेदार होते थे। उनकी दीवारें चित्रित होती थीं। मकानों के द्वार शाखामय होते थे / दरवाजों के ताला लगाया जाता था।' नगर-द्वार के बड़े-बड़े दरवाजे १-जिनदास चूर्णि, पृ० 89 : घरं तिविहं-खातं उस्सितं खामोसितं, तत्थ खायं जहा भूमिधरं, उस्सितं जहा पासाओ, खातउस्सितं जहा भूमिघरस्स उवरि पासादो। २-हारभद्रीय टीका, पत्र 218 : अकस्तम्भः प्रासादः। ३-हारिभद्रीय टीका, पत्र 231 : * गवाक्षकादीन्....। ४-दशवकालिक 8 / 54 : . चित्तमित्तिं न निभाए। ५-हारिभद्रीय टीका, पत्र 184 : द्वारयन्त्रं वाऽपि...।