Book Title: Dashvaikalik Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ 5. व्याख्या-ग्रन्थों के सन्दर्भ में : सभ्यता और संस्कृति 205 साधु पाँच प्रकार के तृण लेते थे : (1) शाली के तृण (2) ब्रीहि के तृण (3) कोद्रव के तृण (4) रालक के तृण (5) अरण्य के तृण पाँच प्रकार के चर्म उपयोग में आते थे :2 (1) बकरे का चर्म (2) मेष का चर्म (3) गाय का चर्म (4) भैंस का चर्म . (5) मृग का चर्म काठ या चमड़े के जूते पहने जाते थे। आतप और वर्षा से बचने के लिए छत्र रखे जाते थे। कम पानी वाले देशों में काठ की बनी हुई कुण्डी जल से भर कर रखी जाती थी, जहाँ लोग स्नान तथा कुल्ला किया करते थे। उसे 'उदगदोणी' कहा जाता था। गाँवगाँव में रहंट होते थे और उनसे जल का संचार लकड़ी से बने एक जल-मार्ग से होता था। इसे भी 'उदगदोणी कहते थे।५ स्वर्णकार काठ की अहरन रखते थे। ___ थाली, कटोरे आदि वर्तन विशेषतः कांसी के होते थे। धनवानों के यहाँ सोने-चाँदी के वर्तन होते थे। प्याले, क्रीडा-पान के वर्तन, थाल या खोदक को 'कंस' कहते थे। कच्छ १-हारिभद्रीय टीका, पत्र 25 / २-वही, पत्र 25: भय एल मावि महिसी मियाणमजिणं च पंचमं होइ / ३-दशवकालिक, 3 / 4 / ४-जिनदास चूर्णि, पृ०२५४ / ५-हारिभद्रीय टीका, पत्र 218 : . 'उदकद्रोण्योऽरद्धजलधारिका / ६-वही, पत्र 218: गण्डिका सुवर्णकाराणामधिकरणी (अहिगरणी) स्थापनी।