Book Title: Dashvaikalik Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ 5. व्याख्या-ग्रन्थों के सन्दर्भ में : सभ्यता और संस्कृति 206 7. वेलुय (5 / 2 / 21) बिल्व या वेश करिल्ल / / / 8. कासवनालिय (5 / 2 / 21) श्रीपणि फल, कसारु / ' 6. नीम (५।२।२१)कदम्ब का फल / 10. कवित्थ (५।२।२३)कैथ / 11. माउलिंग (5 / 2 / 23) बिजौरा / 4 12. बिहेलग (5 / 2 / 24) बहेडा / 13. पियाल (5 / 2 / 24) प्याल का फल। चिरौंजी प्रियाल की मज्जा को कहा जाता है।५ ____फल की तीन अवस्थाएं बतायी गयी हैं-(१) वेलोचित-अतिपक्व, (2) टाल-जिसमें गुठली न पड़ी हो, (3) द्वधिक-जिसकी फांके की जा सकें।६ - आम आदि फलों को कृत्रिम उपायों से भी पकाया जाता था। कई व्यक्ति उन्हें गढों में, कोद्रव धान्य में तथा पलाल आदि में रख कर पकाते थे। ____ अष्टांगहृदय में आम की तीन अवस्थाओं का उल्लेख है और उनके भिन्न-भिन्न गुण बताए हैं-(१) कच्चा आम ( बिना गुठली का टिकारो ) यह वायु, पित्त और रक्त को दूषित करता है, (2) कच्चा आम (गुठली पड़ा हुआ) यह कफ-पित्त कारक होता है, (3) पका आम-यह गुरु, वायु-नाशक होता है और जो अम्ल होता है वह कफ एवं शुक को बढ़ाता है। १.-अगस्त्य च णि : __वेलुयं विल्लं वंसकरिल्लो वा। २-वही: कासवनालियं सीवण्णी फलं कस्सारुकं / .. ३-देखो दशवकालिक (माग 2), पु०.३०६, टिप्पण 38 / - . ४-बीजपुर, मातुलिंग, रुचक, फल पूरक-इसके पर्यायवाची नाम है। देखो - शालिग्राम निघण्टु भूषण, पृ० 578 ; ५-अष्टाङ्गहृदय, सूत्र स्थान, 6 / 123-24 / : ६-दशवैकालिक 7 / 32 / ७-हारिभद्रीय टीका, पत्र 219: गर्तप्रक्षेपकोद्रवपलालादिना विपाच्य भक्षणयोग्यानीति ८-अष्टांगहृदय, सूत्र स्थान, 6128,129 : वातपित्तासृक्कृद् बालं, बद्धास्थिकफपित्तकृद् / गुर्वानं वातजित् पक्वं, स्यादम्लं कफशुक्रकृत् // 15