Book Title: Dashvaikalik Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ 210 दशवकालिक : एक समीक्षात्मक अध्ययन शाक निम्न शाकों के नाम प्राप्त होते हैं : (1) मूली ( 37) (2) सिंगवेर ( 37 ) आद्रक / यह शाक या अन्न के खाद्य, पेय पदार्थ बनाने __ में संस्कार करने के लिए ( मशाले के रूप में ) प्रयुक्त होता था। (3) सन्निर (5 / 170) पत्ती का शाक। .. (4) तुंबाग ( 5 / 170 ) घीया। (5) सालुयं ( 5 / 2 / 18 ) कमल कन्द / (6) विरालिय (5 / 2 / 18) पलाश कन्द / इसे क्षीर-विदारी, जीवन्ती और गोवल्ली भी कहा जाता था। (7) मुणालिय (5 / 2 / 18) पद्म-नाल। यह पद्मिनी के कन्द से उत्पन्न होती है और उसका आकार हाथी दाँत जैसा होता है / (8) कुमद-नाल ( 5 / 2 / 18) / (9) उताल-नाल ( 5 / 2 / 18 ) / (10) सासवनालिय ( 5 / 2 / 18 ) सरसों की नाल / (11) पूइ (5 / 2 / 22) पोई शाक / पूति—यह 'पूतिकरंज' का संक्षिप्त भी हो सकता है। शाकवर्ग में इसका उल्लेख भी है। चिरबिल्व (पूतिकरंज) के अंकुर अग्नि दीपक, कफ-वात-नाशक और मल-रेचक है। (12) पिन्नाग ( 5 / 2 / 22 ) पिण्याक–सरसों आदि की खली। (13) मूलगत्तिय (5 / 223 ) मूलक-पोतिका-कच्ची मूली / अष्टांगहृदय में बाल ( कच्ची, अपक्व ) और बड़ी ( पक्की ) मूली के गुण-दोष भिन्न १-सुश्रुत, सूत्र स्थान, 46 / 221-222 / २-अगस्त्य चूर्णि: विरालियं पलासकंदो अहवा छीरविराली जीवन्ती, गोवल्ली इति एसा ! ३-जिनदास चूर्णि, पृ० 197 : मुणालिया गयवंतसन्निमा पउमिणिकंदाओ निम्गच्छति / ४-अष्टांगहृवय, सूत्र स्थान, 6 / 98 / ५-सुश्रुत, 4 / 6 / 257 /