Book Title: Dashvaikalik Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha

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Page 240
________________ 5. व्याख्या-ग्रन्थों के सन्दर्भ में : सभ्यता और संस्कृति 211 भिन्न बतलाए गए हैं। सुश्रुत में छोटी मूली के लिए मूलक-पोतिका शब्द व्यवहृत हुआ है / 2 मूलगत्तिया का संस्कृत रूप यही होना चाहिए। खाद्य: निम्न ब्यञ्जनों के नाम मिलते हैं : (1) सक्कुलि ( 5 / 171 ) शष्कुली–तिलपपड़ी। चरक और सुश्रुत में इसका अर्थ कचौरी आदि किया है / 4 (2) फणिय ( 5 / 171 )-गीला गुड़ ( राब ) / (3) पूय ( , )-पूआ।। (4) सत्तुचुण्ण ( , )-शक्तु चुर्ण-सत्त का चूर्ण। (5) मंथु (5 / 1 / 68 )-बेर जौ आदि का चूर्ण। (6) कुम्मास ( , )कुल्माष—गोल्ल देश में वे जौ के बनाए जाते थे।५ तिल पप्पडग (5 / 2 / 21) तिल पर्पटक / इसका अर्थ तिल पपड़ी किया गया है। किन्तु हो सकता है कि इसका अर्थ बनस्पति परक हो। शाक वर्ग में तिल पर्णिका ( बदरक ) और पर्पट ( पित्तपापड़ा ) का उल्लेख मिलता है। "तिल' तिल-पर्णिका का संक्षिप्त रूप हो तो तिल पप्पडग का अर्थ तिल पर्णिका और पित्त-पापड़ा भी हो सकता है। (7) चाउलंपिट्ठ (५।२।२२)-चावल का आटा' या भूने हुए चावल / ' १-अप्टांगहृदय, सूत्र स्थान, 6 / 102-104 / २-सुश्रुत, सूत्र स्थान, 46 / 240 : -- कटु तिक्तरसा हृद्या रोचकी वह्निदीपनी / - सर्वदोषहरा लध्वी कण्ट्या शूलकपोतिका // ३-जिनदास चर्णि, पृ०१८४ : सक्कुलीति पपडिकादि / ४-सुश्रुत-भक्ष्यपदार्थ वर्ग 46 / 544 / ५-जिनदास चर्णि, पृ०१९० कुम्मासा जहा गोल्लविसए जवमया करेंति / देखो दशवैकालिक (भाग 2) पृ०२८५ टिप्पण 229 / ६-अष्टांगहृदय, सूत्र स्थान 676 / ७-अगस्त्य च णि पृ०१९८ / चाउलं पिट्ठो लोट्टो। -जिनदास चूर्णि, पृ०१९८ : चाउलं पिठं भद्रं भण्णइ।

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