Book Title: Dashvaikalik Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ 5. व्याख्या-ग्रन्थों के सन्दर्भ में : निक्षेप-पद्धति 186 (3) वर्णसम-ऋषभ, निषाद, पंचम आदि वर्ण कहलाते हैं / जो इनके साथ-साथ गाया जाता है, उसे वर्णसम कहते हैं। (4) ग्रहसम—ग्रह का अर्थ है उत्क्षेप / (कई इसे प्रारम्भ-रस विशेष भी मानते हैं ) जो उत्क्षेप के साथ-साथ गाया जाता है, उसे ग्रहसम कहते हैं / (5) लयसम-तंत्री की विशेष प्रकार की ध्वनि को 'लय' कहते हैं। जो लय के साथ साथ गाया जाता है, उसे लयसम कहते हैं। वंश-शलाका से तंत्री का स्पर्श किया जाता है और नखों से तार को दबाया जाता है, तब जो एक भिन्न प्रकार का स्वर उठता है, उसे 'लय' कहते हैं / चौर्ण : ____ जो अर्थ बहुल हो—जिसके बहुत अर्थ हों, जो महान् अर्थ वाला हो-हेय और उपादेय का प्रतिपादन करने वाले तथ्यों से युक्त हो, जो हेतु-निपात और उपसर्ग से युक्त होने के कारण गंभीर हो, जो बहुपाद हो—जिसके चरणों का कोई निश्चित परिमाण न हो, जो अव्यवच्छिन्न हो-विराम-रहित हो, जो गम-शुद्ध हो—जिसमें सदृश अक्षर वाले वाक्य हों और जो नय-शुद्ध हो—जिसका अर्थ नैगम आदि विभिन्न दृष्टिकोणों से प्रतिपादित हो, उसे 'चौर्ण-पद' कहते हैं। ब्रह्मचर्य अध्ययन (आचारांग प्रथम श्रुतस्कन्ध) चौर्ण पद है / 2 7. काय : __ काय अनेक प्रकार का होता है - (1) नाम-काय—जिसका नाम 'काय' हो / (2) स्थापना-काय—जिस सचेतन या अचेतन वस्तु में 'काय' का आरोप किया गया हो उसे स्थापना-कांय कहते हैं / १-दशवकालिक नियुक्ति, गाथा 174 : अत्थबहुलं महत्थं हेउनिवाओवसग्गगंभीरं / बहुपायमवोच्छिन्नं गमणयसुद्धं च चुण्णपयं // २-हारिभद्रीय टीका, पत्र 88: / चौर्ण पदं ब्रह्मचर्याध्ययनपदव दिति / ३-(क) वही नियुक्ति, गाथा 228 : . णामं ठवणसरीरे गई णिकाय त्थिकाय दविए य / माउगपज्जवसंगहमारे तह भावकाए य॥ (ब) हारिभद्रीय टीका, पत्र 134,135 /