Book Title: Dashvaikalik Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ 186 दशवकालिक : एक समीक्षात्मक अध्ययन दव्य-पद के ग्यारह प्रकार'(१) आकोट्टिम-पद जैसे—रुपया / यह दोनों ओर से मुद्रित होता है / (2) उत्कीर्ण-पद जैसे—प्रस्तर में नाम उत्कीर्ण होता है अथवा कांस्य-पात्र उत्कीर्ण होता है। (3) उपनेय-पद जैसे-वकुल आदि के आकार के मिट्टी के फूल बनाकर उन्हें पकाते हैं, फिर गरम कर उनमें मोम डाला जाता है। उससे वे मोम के फूल बन जाते हैं / 2 . (4) पीड़ित-पद जैसे—पुस्तक को वेष्टित कर रखा जाता है तब उसमें भंगावलियाँ उठ जाती हैं। (5) रंग-पद जैसे रंगने पर कपड़ा विचित्र रूप का हो जाता है। (6) ग्रथित-पद जैसे ---गूंथी हुई माला। (7) वेष्टिम-पद जैसे—पुष्पमय मुकुट / आनन्दपुर में ऐसे मुकुट बनाए जाते थे।3 . (8) पूरिम-पद जैसे-जेत की कुण्डी बनाकर वह फूलों में भरी जाती है। उसमें अनेक छिद्र होते हैं। १-दशवकालिक नियुक्ति, गाथा 167 : . आउट्टिमउक्किन्नं उण्णेज्जं पीलिमं च रंगं च / गंथिमवेढिमपूरिम वाइमसंघाइमच्छेज्जं // २-हारिभद्रीय टीका, पत्र 87 : तहा बउला दिपुप्फसंठाणाणि चिक्खिल्लमयपडिबिंबगाणि काउं पच्नति, तओ तेसु बग्घारिता मयणं छुब्मति, तओ मयणमया पुप्फा हवन्ति। ३-जिनदास चूर्णि, पृ० 76 : / वेढियं जहा आणंदपुरे पुष्फमया मउडा कीरंति / ४-वही, पृ० 76 : पूरिमं वित्तमयी कुंडिया करिता सा पुष्फाणं भरिज्जइ, तत्थ छिड्डा भवंति एवं पूरिमं।