Book Title: Dashvaikalik Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ 182 दशवकालिक : एक समीक्षात्मक अध्ययन (1) द्रव्य-उपाय का लोकोत्तर रूप : (1) जैसे धातुवादिक उपाय से सोना बनाते हैं उसी प्रकार मुनि संघीय-प्रयोजन उत्पन्न होने पर योनि-प्राभृत आदि ग्रन्थ -निर्दिष्ट उपायों से सोना तैयार करे / (2), विशेष स्थिति उत्पन्न होने पर विद्या-बल से ऐसा दृश्य उपस्थित करे, जिससे कठिन स्थिति उपशान्त हो जाए।२ / ____ नियुक्तिकार ने उपाय के केवल चार विकल्प बतलाए हैं। उन्होंने जो उदाहरण दिए हैं वे सारे लौकिक हैं / 3 लोकोत्तर विकल्पों की उन्होंने कोई चर्चा नहीं की है। चूर्णिकार ने लोकोत्तर उपायों की चर्चा की है। वहाँ संघ-कार्य के लिए स्वर्ण-निर्माण और विद्या प्रयोग का अपवाद स्वीकार किया है। वृत्तिकार ने लोकोत्तर उपायों की चर्चा को है किन्तु चूर्णिकार के इस ( स्वर्ण-निर्माण ) अभिप्राय को उन्होंने पराभिमत के रूप में उद्धृत किया है। उनके अनुसार द्रव्य-उपाय का लोकोत्तर रूप यह हैपटल ( छाछ से भरे हुए वस्त्र ) आदि के प्रयोग से जल को प्रासुक बनाना / 6 चूर्णि का अपवाद वृत्तिकार को मान्य नहीं रहा और वृत्ति का अपवाद आज मान्य नहीं है / इसका निष्कर्ष यह है कि चूर्णि-काल में साधु-संघ बड़ी कठिनाइयों से गुजर रहा था / उस परिस्थिति में अनेक विधि-विधान निर्मित हुए। आगम-काल में अहिंसा का स्थान सर्वोच्च था। उसके सामने संघ का स्थान गौण था, किन्तु इस मध्यकाल में संघ ने बहुत ऊँचा स्थान प्राप्त कर लिया। यौगिक सिद्धियों का प्रयोग भी मान्य होने लगा। वृत्ति-काल में कठिनाइयाँ भिन्न प्रकार की थीं। इसलिए अपवाद भी भिन्न प्रकार के बने / आज दोनों प्रकार की कठिनाइयाँ नहीं हैं। १-जिनदास चूर्णि, पृ० 44 : . दव्वोवायो जहा धातुवाइया उवाएण सुवण्णं करेंति, एवं तारिसे संघकज्जे समुप्पण्णे उवाएण जोणीपाहुडाइयं पडिणीयं आसयंति / २-वही, पृ० 44 : विजा तिसएहिं वा एरिसे दरिसेइ जेण उवसमेइ / ३-दशवैकालिक नियुक्ति, गाथा 61-62 / ४-जिनदास चूर्णि, पृ० 44 / ५-हारिभद्रीय टीका, पत्र 40 : 3. अन्ये तु योनिप्राभृतप्रयोगतः काञ्चनपातनोत्कर्षलक्षणमेव संङ्घातप्रयोजनादौ द्रव्योपायं व्याचक्षते। ६-वही, पत्र 40 : ... लोकोत्तरे त्वध्वादौ पटलादिप्रयोगतः प्रासुकोदककरणम् / ..