Book Title: Dashvaikalik Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ .5. व्याख्याग्रन्थों के सन्दर्भ में : मुनि कैसा हो ? 173 22. वह अगन्धनकुल-सर्प जैसा हो: सर्प दो प्रकार के होते हैं : 1. गन्धन-कुल में उत्पन्न। 2. अगन्धन-कूल में उत्पन्न / गन्धन जाति ले सर्प डस कर चले जाते हैं किन्तु मंत्रों से प्रेरित हो पुनः वहाँ आकर डसे हुए स्थान (व्रण) पर मुँह रखकर विष को चूस लेते हैं। अगन्धन जाति के सर्प मरना स्वीकार कर लेते हैं, परन्तु वमन किए हुए विष को पुन: पीना स्वीकार नहीं करते। उसी प्रकार मुनि भी त्याज्य काम-भोंगों को पुनः पीने वाला न हो / ' 23. वह हढ वनस्पति जैसा न हो : हढ एक जलज वनस्पति है। उसकी जड़ नहीं होती। वायु के झोंकों से वह इधर-उधर आती-जाती रहती है। जैसे वह अबद्ध-मूल और अस्थिर होती है, उसी प्रकार मुनि भी अबद्ध-मूल और अस्थिर न हो / ' १-जिनदास चूर्णि, पृ० 87 / / २-वही, पृ० 89 : हढो णाम वणस्सइविसेसो, सो बहतलागादिसु छिण्णमूलो भवति, तथा वातेण य आइद्धो इओ य निज्जइ।