Book Title: Dashvaikalik Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ 172 दशवकालिक : एक समीक्षात्मक अध्ययन 18. वह उंदुर जैसा हो: जैसे चूहा उपयुक्त देश और काल में विचरण करता है, उसी प्रकार मुनि भी उपयुक्त देश-काल-चारी हो।' 16. वह नट जैसा हो: जैसे नट बहुरूपी होता है, कभी राजा का और कभी दास का वेश धारण कर लेता है। उसी प्रकार मुनि भी हर स्थिति व काम करने में अपने को वैसे ही बना लेता है। 20. वह मुर्गे जैसा हो : जैसे मुर्गा प्राप्त अनाज को पैरों से बिखेर कर चुगता है ताकि दूसरे प्राणी भी उनको चुग सके ( खा सकें ), उसी प्रकार मुनि भी संविभागी हो—प्राप्त आहार के लिए दूसरों को निमंत्रित कर खाने वाला हो / 21. वह काँच जैसा हो : जैसे काँच निर्मल और प्रतिबिम्बग्राही होता है, उसी प्रकार मुनि भी निर्मल और प्रतिबिम्बग्नाही हो। काच वैसा ही प्रतिबिम्ब लेता है, जैसी वस्तु सामने आती है। उसी प्रकार मुनि भी तरुणों में तरुण, स्थविरों में स्थविर और बच्चों में बच्चा बन जाए।' १-(क) हारिभद्रीय टीका, पत्र 84 : ___ उन्दुरुसमेन उपयुक्तदेशकालचारितया। (ख) जिनदास चूर्णि में इसका उल्लेख नहीं है। २-जिनदास चूर्णि, पृ० 73 : जहा से बहुरूवि रायवेसं काउं दासवेसं धारेइ एवमाई, एवं साहुणा माणा वमाणेसु नडसरिसेण भवियव्वं / ३-वही, पृ० 73 : कुक्कुडो जं लब्भइ तं पाएण विक्किरइ ताहे अण्णेवि सत्ता चुणंति, एवं संविभागरुइणा भवियव्वं / ४-हारिभद्रीय टीका, पत्र 84 : आदर्शसमेन निर्मलतया तरुणाद्यनुवृत्तिप्रतिबिम्बभावेन च, उक्तं चतरुणंमि होइ तरुणो थेरो थेरेहिं उहरए डहरो। अदाओविव एवं अणुयत्तइ जस्स जं सीलं //