Book Title: Dashvaikalik Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ 4. चर्यापथ : एषणा 136 न ले। जिस वस्तु के दो स्वामी या भोक्ता हों, उनमें से एक निमंत्रित करे तो मुनि वह आहार न ले। दोनों निमंत्रित करें तो ले / 3 गुड़ के घड़े का धोवन, आटे का थोवन, जो तत्काल का धोवन (अधुनाधौत) हो न ले। जिसका स्वाद, गंध और रंस न बदला हो, विरोधी शस्त्र द्वारा जिसके जीव ध्वस्त न हुए हों तथा परम्परा के अनुसार निस धोवन को अन्तर्मुहूर्त-काल न हुआ हो, वह अधुनाधौत कहलाता है। बहुत खट्टा पानी न ले। पानी को चखकर ले / 6 आगम-रचना-काल में साधुओं को यवोदक, सुषोदक, सौवीर, आरनाल आदि अम्ल जल ही अधिक मात्रा में प्राप्त होते थे। उनमें कांजी की भाँति अम्लता होती थी। अधिक समय होने पर वे जल अधिक अम्ल हो जाते थे। दुर्गन्ध भी पैदा हो जाती थी। वैसे जलों से प्यास भी नहीं बुझती थी। इसलिए उन्हें चख कर लेने का विधान किया गया। कैसे खाए ? ____सामान्य विधि के अनुसार मुनि गोचरान से वापस आ उपाश्रय में भोजन करे। किन्तु जो मुनि दूसरे गाँव में भिक्षा लाने जाए और वह बालक, बूढ़ा, बुभुक्षित, तपस्वी हो या प्यास से पीड़ित हो तो उपाश्रय में आने से पहले ही भोजन कर सकता है। यह आपवादिक विधि है। इसका स्वरूप यह है—जिस गाँव में वह भिक्षा के लिए जाए वहाँ साधु ठहरे हुए हों तो उनके पास आहार करे। यदि साधु न हों तो कोष्ठक अथवा भित्ति-मूल, जो ऊपर से छाया हुआ हो और चारों ओर से संवृत हो, वहाँ जाए और आज्ञा लेकर भोजन के लिए बैठे। आहार करने से पूर्व 'हस्तक' (मुखपोतिका, मुखवस्त्रिका) से समूचे शरीर का प्रमार्जन कर भोजन प्रारम्भ करे। भोजन करते समय यदि भोजन में गुठली, कांटा, आदि निकले तो उन्हें उठाकर न फेंके, मुँह से न थूके, किन्तु हाथ से एकान्त में रख दे / ... ' उपाश्रयं में भोजन करने की विधि यह है कि मुनि भिक्षा लेकर उपाश्रय में आ १-दशवैकालिक, 5 / 2 / 20 / २-वही, 5 / 1 / 37 / ३-वही, 51138 / ___४-वही, 5175 / ५-वही (भा०.२), पृष्ठ 272, टिप्पण 193 / -वही, 5 // 1178 / ७-वही, 5 / 1 / 82-86 /