Book Title: Dashvaikalik Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ 4. चर्यापथ : एषणा 137 भोजन लेने न जाए।' तत्काल में लीपे हुए आँगन में भोजन लेने न जाए / गृहपति की आज्ञा लिए बिना शाणी और प्रावार से आच्छादित द्वार को खोल भोजन लेने अन्दर न जाए / 3 नीचे द्वार वाले अन्धकारपूर्ण कोठे में तथा जहाँ पुष्प, बीज आदि बिखरे हों, वहाँ भोजन लेने न जाए। भिक्षा, शयन, आसन आदि न देने पर गृहस्थ पर कुपित न हो।५ दूसरों की प्रशंसा करता हुआ याचना न करे / 6 वर्षा बरस रही हो, कुहरा गिर रहा हो, महावात चल रहा हो या मार्ग में संपातिम जीव छा रहे हों तो भिक्षा लेने न जाए। वेश्या-पाड़े में भिक्षा लेने भी न जाए। सामुदानिक भिक्षा करे-नीचे कुलों को छोड़ ऊँचे कुल में न जाए।' भिक्षा कैसे ले ? मुनि यथाकृत आहार ले / 10 अपने लिए बनाया हुआ, अपने निमित्त खरीदा हुआ, निमंत्रण पूर्वक दिया हुआ, सम्मुख लाया हुआ भोजन न ले / 11 शय्यातर का भोजन न ले / 12 जाति, कुल, गण, शिल्प और कर्म को जता कर भिक्षा न ले। 3 भोजन आदि को गिराते हुए भिक्षा दे तो न ले।१४प्राणि, बीज और हरियाली कुचलते हुए दे तो न ले।'५ सचित्त का संघट्टन कर दे तो न ले। 6 पुराकर्म-कृत, पश्चात्कर्म-कृत और असंसृष्ट भोनन न १-दशवकालिक, 5 / 1 / 17 / २-वही, 5 / 1 / 21 / / ३-वही, 5 / 1 / 18 / .४-वही, 5 / 1 / 20,21 / ५-वही, 5!2 / 27,28 / ६-वही, 5 / 2 / 29 / ७-वही, 5 / 1 / / ' ८-वही, 5 / 1 / 9 / ९-वही, 5 / 2 / 25 / १०-वहीं, 1 / 4 / ११-वही, 3 / 2 / १२-वही, 3 / 5 / १३-वही, 3 / 6 / १४-दही, 5 // 1 // 28 // १५-वही, 5 / 1 / 29 / १६-वही, 5 / 1 / 30-31 /