Book Title: Dashvaikalik Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ 140 दशवकालिक : एक समीक्षात्मक अध्ययन सर्व प्रथम स्थान का प्रतिलेखन करे। तदनन्तर लाई हुई भिक्षा का विशोधन करे / उसमें जीव-जन्तु या कंटक आदि हों तो उन्हें निकाल कर अलग रख दे / उपाश्रय में विनयपूर्वक प्रवेश कर गुरु के समीप आ 'ईर्यापथिकी' सूत्र पढ़े, फिर कायोत्सर्ग करे। आलोचना करने से पूर्व आचार्य की आज्ञा ले। आज्ञा प्राप्त कर आनेजाने में, भक्त-पान लेने में लगे सभी अतिचारों को यथाक्रम याद कर, जो कुछ जैसे बीता हो, वह सब आचार्य को कहे और ऋजु बन आलोचना करे। यदि आलोचना करने में क्रम-भंग हुआ हो तो उसका फिर प्रतिक्रमण करे। फिर शरीर को स्थिर बना-निरवद्यवृत्ति और शरीर-धारण के प्रयोजन का चिन्तन करे। इस प्रचिन्तनमय कायोत्सर्ग को नमस्कार-मंत्र के द्वारा पूर्ण कर जिन-संस्तव (लोगस्स) पढ़े, और क्षण भर के लिए विश्राम करे और जघन्यत: तीन गाथाओं का स्वाध्याय करे। जो मुनि आन-प्राणलब्धि से सम्पन्न होते हैं, वे इस विश्राम काल में सम्पूर्ण चौदह-पूर्वी का परावर्तन कर लेते हैं। इस विश्राम से अनेक लाभ होते हैं। भिक्षाचरी में इधर-उधर घूमने तथा ऊँचे-नीचे जाने से विशेष श्रम होता है। उससे शरीर की समस्त धातुएँ क्षुब्ध हो जाती हैं। ऐसी स्थिति में भोजन करने पर अनेक रोग उत्पन्न हो सकते हैं और कभी-कभी मृत्यु तक हो जाती है। विश्राम करने से इन सब दोषों से बचा जा सकता है। विश्राम करता हुआ वह यह सोचे-“यदि आचार्य और साधु मुझ पर अनुग्रह करें, मेरा भोजन गहण करें तो मैं धन्य हो जाऊँ।" फिर प्रेमपूर्वक साधर्मिक मुनियों को भोजन के लिए निमंत्रित करे। उसके निमंत्रण को स्वीकार कर जो मुनि भोजन करना चाहें तो उनके साथ भोजन करे। यदि कोई निमंत्रण स्वीकार न करे तो अकेला ही भोजन करे।' ___मुनि खुले पात्र में भोजन करे। भोजन करते समय नीचे न डाले / 2 अरस या विरस, आर्द्र या शुष्क, व्यंजन-सहित या व्यंजन-रहित जो भी आहार भिक्षा में उपलब्ध हो, उसे मुनि मधु-घृत की भाँति खाए / उसकी निन्दा न करे / ' पात्र को पोंछकर सब कुछ खा ले, जूठन न छोड़े।४ दूसरे संविभाग न ले लेंइसलिए भिक्षा को न छुपाए / एकान्त में अच्छा-अच्छा भोजन कर अपना उत्कर्ष दिखाने के लिए मण्डली में विरस आहार न करे / 6 १-दशवकालिक, 5 // 1287-96 / २-वही, // 1196 / ३-वही, // 197-98 / ४-वही, 5 // 2 // 1 // ५-वही, 22 / 31 / ६-वही, 5233-34 /