Book Title: Dashvaikalik Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ १०-पूज्य कौन ? पूज्य कौन ? यह प्रश्न महाभारत कालीन है। युधिष्ठिर ने भीष्म से पूछा था"के पूज्या वै त्रिलोकेऽस्मिन् मानवा भरतर्षभ / " ( महा० अनु० 31 / 1) उत्तर में गुणवान् ब्राह्मण को पूज्य बताया गया है। उत्तर जाति की महत्ता का सूचक है। दशवकालिक में पूज्य के गुण और लक्षणों का बड़ा सुन्दर विवेचन हुआ है / इसके अनुसार गुणवान मनुष्य ही पूज्य है। पूज्य कौन ? इसका उत्तर देते हुए कहा गया हैपूज्य वह होता है: जो आचार्य की शुश्रूषा करता है, उनकी आराधना करता है। जो आचार्य के वचनानुकूल आचरण करता है। जो गरु की आशातना नहीं करता। जो छोटे या बड़े-सबके प्रति विनम्र रहता है। :: जो केवल जीवन-निर्वाह के लिए उञ्छ भिक्षा लेता है। जो अल्प-इच्छा वाला होता है, आवश्यकता से अधिक नहीं लेता। जो अनुकूल या प्रतिकूल परिस्थिति को अपना धर्म मान कर सहता है। जो पर-निन्दा और आत्म-श्लाघा से दूर रहता है। जो रस-लोलुप नहीं होता, जो माया और कुतूहल नहीं करता। जो न दीन बनता है और न उत्कर्ष दिखाता है। जो आत्मवित् है—आत्मा को आत्मा से समझता है / जो राग, द्वेष, क्रोध, मान आदि से दूर रहता है। जो दूसरों के विकास में सतत प्रयत्नशील रहता है। जो मुक्त होने के लिए साधना-रत रहता है।' १-दशवैकालिक, अ०९ उ०३ /