Book Title: Dashvaikalik Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ २-व्याख्यागत प्राचीन परम्पराएँ दशवकालिक के व्याख्या-ग्रन्थों में अनेक प्राचीन परम्पराओं का उल्लेख है। कुछ इस प्रकार हैं : १-एक बार शिष्य ने पूछा- "जन-शासन में पाँच महाव्रत प्रसिद्ध हैं तो फिर रात्रि-भोजन का वर्जन महाव्रतों के प्रकरण में क्यों ?" आचार्य ने कहा-"प्रथम और अन्तिम तीर्थंकर के तत्कालीन जन-मानस की दृष्टि से ऐसी प्रस्थापना की गई है। प्रथम तीर्थकर के काल में मनुष्य ऋजु-जड़ थे और अन्तिम तीर्थंकर के काल में वक्र-जड़ / इसीलिए इस व्रत को महाव्रतों के प्रकरणों में स्थापित कर दिया गया ताकि वे इसे महाव्रत के रूप में मानते हुए इसका भंग न करें। शेष बाईस तीर्थंकरों के काल में यह उत्तर-गुण की कोटि में था।" . शिष्य ने पूछा--- "यह क्यों ?" आचार्य ने कहा-'मध्यवर्ती बाईस तीथंकरों के काल में मनुष्य ऋजु-प्राज्ञ थे। वे रात्रि-भोजन का सहज भाव से परित्याग कर देते थे।" २-भिक्षा ग्रहण की विधि में भी स्थविर-कल्पिक और जिन-कल्पिक मुनियों में भिन्नता है। जिस स्त्री के गर्भ का नौवाँ मास चल रहा हो, ऐसी काल-मासवती स्त्री से स्थविर-कल्पिक मुनि भिक्षा ग्रहण कर लेते हैं परन्तु जिन-कल्पिक मुनि जिस दिन से स्त्री गर्भवती होती है, उसी दिन से उसके हाथ से भिक्षा लेना बन्द कर देते हैं। ३-स्तनजीवी बालक को स्तन-पान छुड़ा स्त्री भिक्षा दे तो, बालक रोए या न रोए, गच्छवासी मुनि उसके हाथ से भिक्षा नहीं लेते। यदि वह बालक कोरा स्तनजीवी न हो, दूसरा आहार भी करने लगा हो और यदि वह छोड़ने पर न रोए तो गच्छवासी मुनि उसकी माता के हाथ से भिक्षा ले सकते हैं। स्तनजीवी बालक चाहे स्तन-पान न कर रहा हो फिर भी उसे अलग करने पर रोने लगे उस स्थिति में भी गच्छवासी मुनि भिक्षा नहीं लेते। गच्छ-निर्गत मुनि स्तनजीवी बालक को अलग करने पर, चाहे वह रोए या न रोए स्तन-पान कर रहा हो या न कर रहा हो, उसकी माता के हाथ से भिक्षा नहीं लेते। यदि वह बालक दूसरा आहार करने लगा हो उस स्थिति में उसे स्तन-पान करते हुए को छोड़ कर, फिर चाहे वह रोए या न रोए, भिक्षा दे तो नहीं लेते और यदि वह स्तन-पान न १-जिनदास चूर्णि, पृष्ठ 153 / २-वही, पृष्ठ 180 : जा पुण कालमासिणी पुवुट्ठिया परिवेसेंती य थेरकप्पिया गेण्हंति, जिणकप्पिया पुण जद्दिवसमेव आवन्नसत्ता भवति तओ दिवसाओ आरद्धं परिहरति /