Book Title: Dashvaikalik Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
View full book text
________________ 130 दशवैकालिक : एक समीक्षात्मक अध्ययन झुक कर न चले, बहुत हृष्ट या बहुत आकुल होकर न चले, इन्द्रियों को अपने स्थान में नियोजित करके चले।' दौड़ता, बोलता और हँसता हुआ न चले / 2 गवाक्ष * आदि शंकनीय स्थानों को देखता हुआ न चले / भेड़, बच्चे, कुत्ते और बछड़े को लांघ कर प्रवेश न करे। हिलते हुए काठ, शिला या ईट के टुकड़ों पर से न चले। नाना प्रकार के प्राणी भोजन के लिए एकत्रित हों, उनके सम्मुख न जाए। उन्हें त्रास न देता. हुआ यतनापूर्वक चले / 6.. कैसे बैठे? मुनि संयम पूर्वक बैठे-सावधानी से बैठे / आसन्दी, पर्यक, मंच, आसालक (अवष्टम्भ सहित आसन), वस्त्र से गूंथे हुए आसन और पीठ पर न बैठे। भिक्षा करते समय गृहस्थ के घर में न बैठे।' शुद्ध पृथ्वी-शस्त्र से अनुपहत पृथ्वी पर या पृथ्वी पर कुछ बिछाए बिना न बैठे। अचित्त पृथ्वी पर प्रमार्जन कर, आज्ञा लेकर बैठे / 10 आठ प्रकार के सूक्ष्म जीवों को देख कर बैठे / 11 आचार्य के बराबर, आगे और पीछे न बैठे। गुरु के ऊरु से अपना ऊरु सटा कर न बैठे / 12 गुरु के पास हाथ, पैर और शरीर को गुप्त कर बैठे / 13 कैसे खड़ा रहे ? मुनि संयमपूर्वक खड़ा रहे / '4 पानी तथा मिट्टी लाने के मार्ग और बीज तथा १-दशवकालिक, 5 // 1 / 13 / / २-वही, 5 // 114 // ३-वही, 5!1 / 15 / ४-वही, 5 / 1 / 22 / ५-वही, 5 / 1 / 65 / ६-वही, 5 / 2 / 7 / - ७-वही, 4 / 8 / ८-वही, 335,6 / 53,54 / ९-वही, 335,6 / 57 / १०-वही, 8.5 / ११-वही, 8 / 13 / १२-वही, 8 / 45 / १३-वही, 8 / 44 / १४-वही, 4 / 8 /