Book Title: Dashvaikalik Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ २-वेग-निरोध मल-मूत्र के वेग को न रोके। मल-मूत्र की बाधा होने पर प्रासुक स्थान. देख कर, गृहस्वामी की आज्ञा ले, उससे निवृत्त हो जाए। अगस्त्यसिंह स्थविर मल-मूत्र आदि आवेगों को रोकने से होने वाले रोगों का दिग्दर्शन कराते हुए कहते हैं-मूत्र का वेग रोकने से चक्षु की ज्योति नष्ट हो जाती है। मल का वेग रोकने से जीवनी-शक्ति का नाश होता है। ऊर्ध्व वायु रोकने से कुष्ठ-रोग उत्पन्न होता है और वीर्य का वेग रोकने से पुरुषत्व की हानि होती है / 2 . वेग-निरोध के सम्बन्ध में आयुर्वेद का अभिमत यह है--मनुष्य वात (ऊर्ध्व वात एवं भधोवात) मल, मूत्र, छींक, प्यास, भूख, निद्रा, कास, श्रम-जनित श्वास, जम्भाई, अश्रु, वमन और शुक्र—इन तेरह वस्तुओं के उपस्थित (बहिर्गमनोन्मुख) वेगों को न रोके / मल के वेग को रोकने से पिण्डलियों में ऐंठन, प्रतिश्याय, सिरदर्द, वायु का ऊपर को जाना, पडिकतिका, हृदय का अवरोध, मुख से मल का आना और पूर्वोक्त वात-रोध जन्य गुल्म, उदावत आदि रोग होते हैं। मूत्र के उपस्थित वेग को रोकने से—अङ्गों का टूटना, पथरी, वस्ति, मेहन (शिश्न) वंक्षण में वेदना होती है। वात और मलरोध जन्य रोग भी प्रायः होते हैं, अर्थात् कभी नहीं भी होते हैं / १-दशवैकालिक, 5 // 1 // 19 / २-अगस्व चूर्णि : मुत्तनिरोहे चक्खू, वच्चनिरोहे य जीवियं चयति / उड्ढं निरोहे कोढं, सुक्कनिरोहे भवइ अपुमं // ३-अप्टांगहृदय, सूत्रस्थान, 4 / 1 : वेगान्नधारयेद्वातविण्मूत्रक्षवतृक्षुधाम् / निद्राकासश्रमश्वासजृम्भाऽश्रुच्छदिरेतसाम् / / ४-वही, 4 // 3-4 /