Book Title: Dashvaikalik Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ ३-ईर्यापथ कैसे चले ? मुनि संयम पूर्वक चले—सावधान होकर चले / ' धीमे चले, उद्वेग-रहित होकर चले, चित्त की आकुलता को मिटा कर चले / 2 युग-मात्र भूमि को देख कर चले। आयुर्वेद के ग्रन्थों में भी युग-मात्र भूमि को देख कर चलने का विधान मिलता है'विचरेद् युगमात्रक'। विषम मार्ग से न जाए।५ कोयले, राख, तुष और गोबर की राशि को सजीव रजकणों से भरे हुए पैरों से लांघ कर न चले / 6 अष्टांगहृदय में भी राख आदि के ढेर को लाँघ कर जाने का निषेध किया गया है। उसका उद्देश्य भले भिन्न हो पर नियम-निर्माण भिन्न नहीं है। वह इस प्रकार है-चैत्य (ग्राम का पूज्य वृक्ष), पूज्य (पूजा के योग्य गुरु, पिता आदि), ध्वजा, अशस्त (चाण्डाल आदि)-इनकी छाया को न लाँघे। भस्म (राख का ढेर), तुष (धान्य की भूसी), अशुचि (मल, मूत्र, जूठन आदि), शर्करा (कंकड़), मिट्टी के ढेले, बलि-भूमि (जहाँ बलि दी गई हो), स्नान-भूमि (जहाँ स्नान किया हो)-इनको भी नहीं लाँघे / वर्षा, धूअर और महावायु में न चले / उड़ने काले जीव अधिक हों तब न चले / ' कुत्ते, नव-प्रसूता गाय, उन्मत्त बैल, घोड़े-हाथी, बच्चों की क्रीडा-स्थली, कलह और युद्ध से बच कर चले।९ अष्टांगहृदय में लिखा हैहिंसक पशु, दंष्ट्री—साँप आदि और सींग वाले—मेष आदि से बचे।' ऊँचा मुख कर न चले, १-दशवैकालिक, 4 / 8 / २-वही, 512 / . ३-वही, 5 // 1 // 3 / ४-अष्टांगहृदय, सूत्रस्थान, 2 // 32 // .५-दशवैकालिक, 5 // 114,6 / ६-वही, // 17 // ७-अष्टांगहृदय, सूत्रस्थान, 2 // 33 // 34 : . चैत्यपूज्यध्वजाशस्तच्छायाभस्मतुषाशुचीन् / नाक्रामेच्छर्करालोष्टबलिस्नान भुवो न च // -दशवैकालिक, 5 // 1 // 8,9 / .. ९-वही, 11 / 12 / १०-अष्टांगहृदय, सूत्रस्थान, 2041 /