Book Title: Dashvaikalik Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ 3. महाव्रत :संक्षिप्त व्याख्या 115 मूत्र, श्लेष्मादि का उत्सर्ग भी अचित्त पृथ्वी पर करे।' पृथ्वी का खनन न करे / ' पृथ्वी की किसी भी प्रकार से हिंसा न करे / अपूकाय (जल): आयुर्वेद साहित्य में जल के दो विभाग वर्णित हैं—(१) आन्तरिक्ष और (2) भौम / आन्तरिक्ष जल चार प्रकार का होता है : (1) धार- धार बन्ध बरसा हुआ जल / (2) कार- ओले का जल / (3) तौषार- तुषार-जल / (4) हैम- हिम-जल। भौम जल सात प्रकार का होता है : (1) कौप- कुएँ का जल। . (2) नादेय- नदी का जल / (3) सारस- सरोवर का जल / (4) ताडाग- तालाब का जल / (5) प्राश्रवण- झरने का जल / (6) औद्भिद्- पृथ्वी फोड़ कर निकला हुआ जल। (7) चौण्ट्य- बिना बन्धे हुए कुएँ का जल / दशवैकालिक के कर्ता ने जल के मुख्य दो विभाग किए हैं—(१) उदक-भूमि-जल और (2) शुद्धोदक–अन्तरिक्ष-जल / ओस, हिम, महिका, ( तुषार ), करक (ओले)-ये अन्तरिक्ष-जल के प्रकार हैं। हरतनुक औद्भिद् जल-यह भूमि-जल का प्रकार है / कुएँ आदि का पानी भी उदक शब्द के द्वारा संगृहीत है। इस प्रकार जल का विभाग वैसा ही है, जैसा आयुर्वेद-जगत् में सम्मत है / १-दशवकालिक, 8 / 18 / २-वही, 10 / 2 / -३-वही, 6 / 26,29 / ४-सुश्रुत, सूत्र-स्थान, 457 /