Book Title: Dashvaikalik Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ 3. महाव्रत : जीवों का वर्गीकरण 113 जाना, पीछे हटना, संकुचित होना, फैलना, शब्द करना, इधर-उधर जाना, भय-भीत होना, दौड़ना-ये क्रियाएँ हैं और जो आगति एवं गति के विज्ञाता हैं, वे त्रस कहलाते हैं / (4 / सू०६) ___आठवें अध्ययन (श्लोक 13-16) में आठ सूक्ष्म बतलाए गए हैं : (1) स्नेह-सूक्ष्मओस आदि, (2) पुष्प-सूक्ष्म-बरगद आदि के फूल, (3) प्राण-सूक्ष्म-कुन्थु आदि सूक्ष्म अन्तु, (4) उत्तिंग सूक्ष्म-कीडीनगरा, (5) पनक-सूक्ष्म-पंच वर्ण वाली काई, (6) बीज-सूक्ष्म-सरसों आदि के मुँह पर होने वाली कणिका, (7) हरित-सूक्ष्म-तत्काल उत्पन्न अंकुर ओर (8) अण्ड-सूक्ष्म-मधुमक्खी, कीडी, मकड़ी, ब्राह्मणी और गिरगिट के अण्डे / ' त्रस जीव हमारे प्रत्यक्ष हैं। वनस्पति को भी जीव मानने में उतनी कठिनाई नहीं है जितनी शेष चार निकायों को मानने में है। पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु में जीव नहीं किन्तु ये स्वयं जीव हैं-यह धातुवादी बौद्धों और भूतवादी नैयायिकों को ही अमान्य नहीं किन्तु वर्तमान विज्ञान को भी अमान्य है। जैन-दर्शन के अनुसार सारा दृश्य-जगत् या तो सजीव है या जीव का परित्यक्त शरीर। इस विश्व में जितना कठोर द्रव्य है वह सब सजीव है। विरोधी शस्त्र से उपहत होने पर वह निर्जीव हो जाता है। इसका तात्पर्य है कि प्रारम्भ में सारी पृथ्वी सजीव होती है, फिर जल आदि विरोधी द्रव्यों के योग से वह निर्जीव हो जाती है। इस प्रकार पृथ्वी की दो अवस्थाएँ बनती हैं : शस्त्र से अनुपहत-सजीव और शस्त्र से उपहत-निर्जीव / इसी प्रकार जितना द्रव, जितना उष्ण, जितना स्वतः तिर्यग् गतिशील और जितना चय-अपचयशील द्रव्य होता है, वह सब प्रारम्भ में सजीव ही होता है। इन छहों निकायों का विवरण इस प्रकार है : जीवनिकाय लक्षण शस्त्र से अनुपहत शस्त्र से उपहत (1) पृथ्वी कठोरता सजीव निर्जीव * (2) अप द्रवता (3) तेजस् उष्णता (4) वायु स्वतः तिर्यग् गतिशीलता , (5) वनस्पति चय-अपचयधर्मता (6) त्रस चय-अपचयधर्मता इस प्रकार षट् जीवनिकाय का संक्षिप्त वर्णन इस आगम में मिलता है। (4 / सू० 4-6) १-देखो-दशवैका लिक (भाग-२), पृष्ठ 420-21, श्लोक 15 के टिप्पण।