Book Title: Dashvaikalik Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
View full book text
________________ १-जीवों का वर्गीकरण अध्यात्म का सीधा सम्बन्ध आत्मा से है। आत्मा को जानना, देखना और पाना यही उसका आदि, मध्य और अन्त है / जो एक को जानता है, वह सबको जानता है और जो सबको जानता है, वह एक को जानता है / जो अध्यात्म को जानता है, वह बाह्य को जानता है और जो बाह्य को जानता है, वह अध्यात्म को जानता है / 2 इस सिद्धान्त की भाषा में यही तथ्य निहित है कि आत्मा को जाने बिना कोई अनात्मा को नहीं जान सकता और अनात्मा को जाने बिना कोई आत्मा को नहीं जान सकता / इन दोनों को जाने बिना कोई आत्मा को नहीं पा सकता। दशवकालिककार ने इस सत्य का उद्घाटन इन शब्दों में किया है- . जो जीवे वि न याणाइ, अजीवे वि न याणई / जीवाजीवे अयाणंतो, कहं सो नाहिइ संजमं ? // जो जीवे वि वियाणाइ, अजीवे वि वियाणई / जीवाजीवे वियाणतो, सो हु नाहिइ संजमं // 4 / 12,13 जैन-साहित्य में जीव-विज्ञान और अजीव-विज्ञान की बहुत विशद चर्चा है। दशवकालिक का जीव विभाग उतना विशद नहीं है, पर संक्षेप में उसकी रूप-रेखा का बोध कराया गया है। जन-दर्शन विश्व के समस्त जीवों को छह निकायों में वर्गीकृत करता है:१-पृथ्वीकायिक-खनिज जीव / २-अप्कायिक-जल जीव / ३—तेजस्कायिक-अग्नि जीव / * 4-- वायुकायिक -वायु जीव / ५--वनस्पतिकायिक हरित जीव / -- ३–त्रसकायिक–गतिशील जीव / -१-आचारांग, 113 / 4 / 123 : जे एगं जाणइ, से सव्वं जाणइ, जे सव्वं जाणइ से एगं जाणइ / २-वही, 1111757 : जे अज्झत्थं जाणइ से बहिया जाणइ, जे बहिया जाणइ से अज्झ जाणइ / ३-दशवकालिक, 4 // सू० 3-9 /