Book Title: Dashvaikalik Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ दशवकालिक : एक समीक्षात्मक अध्ययन महात्मा बुद्ध ने काय-क्लेश का विरोध किया पर वह मात्रा-भेद से साधना के क्षेत्र में आवश्यक होता है, इसलिए उसका पूर्ण बहिष्कार भी नहीं कर सके / काश्यप के प्रश्न का उत्तर देते हुए महात्मा बुद्ध ने कहा- "काश्यप ! जो लोग ऐसा कहते हैं'श्रमण गौतम सभी तपश्चरणों की निन्दा करता है, सभी तपश्चरणों की कठोरता को बिल्कुल बुरा बतलाता है'—ऐसा कहने वाले मेरे बारे में ठीक से कहने वाले नहीं हैं, मेरी झूठी निन्दा करते हैं। काश्यप ! मैं विशुद्ध और अलौकिक दिव्य-चक्षु से किन्हींकिन्हीं कठोर जीवन वाले तपस्वियों को काया छोड़ मरने के बाद नरक में उत्पन्न और दुर्गति को प्राप्त देखता हूँ। काश्यप ! मैं किन्हीं-किन्हीं कठोर जीवन वाले तपस्वियों को मरने के बाद स्वर्गलोक में उत्पन्न और सुगति को प्राप्त देखता हूँ। किन्हीं-किन्हीं कम कठोर जीवन वाले तपस्वियों को मरने के बाद नरक में उत्पन्न और दुर्गति को प्राप्त देखता हूँ। काश्यप ! किन्हीं-किन्हीं कम कठोर जीवन वाले तपस्वियों को मरने के बाद स्वर्गलोक में उत्पन्न सुगति को प्राप्त देखता हूँ। "जब मैं काश्यप ! इन तपस्वियों की इस प्रकार की अगति, गति, च्युति (मृत्यु) और उत्पत्ति को ठीक से जानता हूँ फिर मैं कैसे सब तपश्चरणों की निन्दा करूँगा ? सभी कठोर जीवन वाले तपस्वियों की बिल्कुल निन्दा, शिकायत करूँगा ?"1 साध्य की प्राप्ति के लिए महात्मा बुद्ध ने जो सम्यक् व्यायाम का निरूपण किया है, वह कठोर चर्या का ज्वलंत रूप है। ___ "और भिक्षुओ, अनुरक्षण-प्रयत्न क्या है ? एक भिक्षु प्रयत्न करता है, जोर लगाता है, मन को काबू में रखता है कि जो अच्छी बातें उस (के चरित्र) में आ गई हैं वे नष्ट न हों, उत्तरोत्तर बढ़े, विपुलता को प्राप्त हों। वह समाधि निमित्तों की रक्षा करता है। भिक्षुओ, इसे अनुरक्षण-प्रयत्न कहते हैं। _ "(वह सोचता है)- चाहे मेरा मांस-रक्त सब सूख जाये और बाकी रह जायें केवल त्वक् , नसें और हड्डियाँ, जब तक उसे जो किसी भी मनुष्य के प्रयत्न से, शक्ति से पराक्रम से प्राप्य है, प्राप्त नहीं कर लूँगा, तब तक चैन नहीं लूँगा। भिक्षुओ, इसे सम्यक-प्रयत्न (व्यायाम) कहते हैं / "2 / परीषह-सहन का जो दृष्टिकोण भगवान् महावीर का रहा है, उसे महात्मा बुद्ध ने स्वीकार नहीं किया, यह नहीं कहा जा सकता। उन्होंने कहा है : १-दीघ-निकाय, पृष्ठ 61 / २-बुद्ध-वचन, पृष्ठ 37 /