Book Title: Dashvaikalik Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
View full book text
________________ 104 दशवकालिक : एक समीक्षात्मक अध्ययन वर्षक और कामाग्नि-सन्दीपक हैं। स्नान को चरक संहिता में वृष्य कहा है।' पवित्रं वृष्यमायुष्यं, श्रमस्वेदमलापहम् / शरीर-बलसंधानं, स्नानमोजस्करं परम् // इसकी व्याख्या में सुश्रुत का श्लोक उद्धृत है, उसमें इसे पुंस्त्व-वर्द्धन कहा है तन्द्रापापोपशमनं, तुष्टिदं पुंस्त्ववर्द्धनम् / रक्तप्रसादनं चापि, स्नानमग्नेश्च दीपनम् // ... उसी प्रकरण में तन्त्रान्तर का श्लोक भी उद्धृत है। उसमें स्नान को कामाग्निसन्दीपन कहा है। प्रातः स्नानमलं च पापहरणं दुःस्वप्नविध्वंसनं, शौचस्यायतनं मलापहरणं संवर्धनं तेजसाम् / रूपद्योतकरं शरीरसुखदं कामाग्निसंदीपनं, स्त्रीणां मन्मथगाहनं श्रमहरं स्नाने दशैते गुणाः // चरक संहिता के सूत्र-स्थान में गन्ध-माल्य-निषेवण (5 / 63), संप्रसाधन (5 / 66) और पादत्र-धारण (5 / 67) को भी वृष्य कहा गया है। ... इसी तरह और भी शरीर की सार-संभाल के लिए किए जाने वाले कृत्य ब्रह्मचर्य में साधक नहीं बनते, इसलिए भगवान् महावीर ने इन्हें भी अनाचार माना है। परीषह-सहन की दृष्टि से भगवान् महावीर ने जो आचार-व्यवस्था स्वीकृत की, वह निग्नन्थ-परम्परा में उनसे पहले भी रही है। बुद्ध ने बुद्धत्व प्राप्ति से पहले की अपनी कठोर-चर्या का जो वर्णन किया है, उसकी तुलना प्रस्तुत आगम के तीसरे अध्ययन में वर्णित आचार-व्यवस्था से होती है। इसके आधार पर यह माना जाता है कि महात्मा बुद्ध ने भ० पार्श्वनाथ की परम्परा स्वीकार की थी। इससे यह सहज हो जाना जा सकता है कि भावी तीर्थङ्करों की आचार-व्यवस्था में भी परीषह-सहन का स्थान होगा। इसका निरूपण भगवान महावीर ने अपने प्रवचन में किया है। भगवान् ने कहा ___ "अज्जो ! यह मगधाधिपति श्रेणिक पहले नरक से निकल कर जब महापद्म नामक पहले तीर्थङ्कर होंगे, तब वे मेरे समान ही आचार-धर्म का निरूपण करेंगे। "अज्जो ! जैसे मैंने छह जीव-निकाय का निरूपण किया है, वैसे ही महापद्म भी छह जीव-निकाय का निरूपण करेंगे। १-चरक, सूत्र-स्थान, अध्ययन 592 / २–मज्झिम-निकाय, महासीहनादसुत्त, पृष्ठ 48-52 / ३-पार्श्वनाथ का चातुर्याम धर्म, पृष्ठ 24-26 /