Book Title: Dashvaikalik Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ . 2. अन्तरङ्ग परिचय : साधना के अंग 105 _ "अज्जो ! जैसे मैंने पाँच महाव्रतों का निरूपण किया है, वैसे ही महापद्म भी पाँच महाव्रतों का निरूपण करेंगे। "अज्जो ! जैसे मैंने श्रमण-निग्रन्थों के लिए नग्नभाव, मुण्ड-भाव, अस्नानस्नान न करना, अदन्तवण—दतौन आदि न करना, अछत्र—छत्र धारण न करना, अनुपानक—जते न पहनना, भूमिशय्या, फलकगय्या, काष्ठ-शय्या, केश-लोच, ब्रह्मचर्य-वास, पर-गृह-प्रवेश, आदर या अनादर पूर्वक लब्ध भिक्षा का ग्रहण-इनका निरूपण किया है, वैसे ही महापद्म भी इनका निरूपण करेंगे। "अज्जो ! जैसे मैंने आधार्मिक, औद्देशिक, मिश्रजात, अध्यवतर, क्रीत, प्रामित्य, आछेद्य, अनिसृष्ट, अभिहृत, कान्तार-भक्त, दुर्भिक्ष-भक्त, ग्लान-भक्त, बाई लिका-भक्त, प्राघूर्ण-भक्त, मूल-भोजन, कन्द-भोजन, फल-भोजन, बीज-भोजन, हरित-भोजन—इनका प्रतिषेध किया है, वैसे ही महापद्म भी आधार्मिक यावत् हरित-भोजन का प्रतिषेध करगे। __"अज्जो ! जैसे मैंने शय्या-पिण्ड और राज-पिण्ड का प्रतिषेध किया है, वैसे ही महापद्म भी इनका प्रतिषेध करेंगे।'' सूत्रकृतांग में परिज्ञातव्य-प्रत्याख्यानात्मक कर्मो की लम्बी तालिका है। जम्बू के प्रश्न पर सुधर्मा स्वामी ने भगवान महावीर के धर्म का मर्म-स्पर्शी वर्णन किया है। वहाँ बहुत सारे परिज्ञातव्य-कर्म ऐसे हैं, जो दशवकालिक के इस अध्ययन में नहीं हैं। प्रस्तुत अध्ययन के अनाचारों से जिनकी तुलना होती है, वे ये हैं : (1) वस्तिकर्म, (2) विरेचन, (3) वमन, (4) अंजन, (5) गंध, (6) माल्य, (7) स्नान, (8) दंत-प्रक्षालन, (6) औद्देशिक, (10) क्रीत-कृत, (11) आहृत, (12) कल्क-उद्वर्तन, (13) सागारिक-पिण्ड, (शय्यातर-पिण्ड), (14) अष्टापद, (15) उपानत्, (16). छत्र, (17) नालिका, (18) बाल-वीजन, (16) पर-अमत्र (गृहि-अमत्र), (20) आसन्दी-पर्यक, (21) गृहान्तर-निषद्या, (22) संप्रच्छन्न, . (23) स्मरण-आतुर-स्मरण और (24) अन्नपानानुप्रदान—गृहि वैयावृत्त्य / आचाराङ्ग में भगवान के साधना-काल का अत्यन्त प्रामाणिक विवरण है। वहाँ बताया गया है कि भगवान् गृहस्थ का वस्त्र नहीं पहनते थे, गृहस्थ के पात्र में खाते भी १-स्थानांग, 9 / 3 / 693 / २-सूत्रकृतांग, 1 / 9 / 12,13 से 18,20,21,23,29 /