Book Title: Dashvaikalik Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
View full book text
________________ ५-भाषा की दृष्टि से . इसमें अर्धमागधी और जैन-महाराष्ट्रो आदि के संवलित प्रयोग हैं। 'हत्थं सि वा', 'पायंसि वा' ( ४।सू० 23 ) में अर्धमागधी के प्रयोग हैं। प्राकृत में सप्तमी के एकवचन के दो रूप बनते हैं—हत्थे, हत्थम्मि / ' 'हत्थंसि' यह अर्धमागधी में बनता है। 'जे' (2 / 3 ), 'करेमि' ( ४।सू०१० )-इनमें 'ओकार' के स्थान में जो ‘एकार' है वह अर्धमागधी का लक्षण है / मणसा ( 8 / 3), जोगसा ( 8 / 17 )- ये अर्धमागधी के प्रयोग हैं। प्राकृत में ये नहीं मिलते। बहवे ( 748 ), 'बहु' शब्द का प्रथमा का बहुवचन, जसोकामी ( 27 ), दोच्चे (४।सू० 12 ), तच्चे ( ४।सू० 13), सोच्चा (4 / 11), लभ्रूण ( 5 / 2 / 47 ), ऊसढं ( 5 / 2 / 25 ), संवुड ( 5 / 1 / 83 ), परिवुड (6 / 1 / 15 ), कड (4 / 20), कटु ( चू०१।१४ ) आदि-आदि तथा मकार के अलाक्षणिक प्रयोग, जिनका यथास्थान निर्देश किया गया है, ये सब अर्धमागधी के प्रयोग हैं, जिन्हें हेमचन्द्र ने अपने प्राकृतव्याकरण में आर्ष-प्रयोग कहां है। हियट्टयाए ( ४सू०१७ )—यहाँ स्वार्थ में 'या' और 'य' के स्थान में 'एकार' का प्रयोग है, जो प्राकृत-सिद्ध नहीं है। 'तेइंदिया' में 'ति' का 'ते' हुआ है / यह अर्धमागधी का प्रयोग है / कहीं शौरसेनी के लक्षण भी मिलते हैं, जैसे—अत्तवं (आत्मवान्) (8 / 48) यहाँ 'न' को 'म' किया है, जो शौरसेनी में होता है / 4 देशी या अपभ्रंश शब्दों के प्रयोग भी प्रचुर हैं। गावी (5 / 1 / 12) को पतञ्जलि 'गो' शब्द का अपभ्रंश बतलाते हैं। आचार्य हेमचन्द्र ने प्राकृत-भाषा-विशेष के शब्दों को 'देशी' माना है।६ 1. हेमशब्दानुशासन, 8 / 3 / 11 : डे म्मि / २-वही, 8 / 4 / 287 : अत एत्सौ पुसि मागध्याम् / ३-प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पैरा 438, पृष्ठ 651 / ४-हेमशब्दानुशासन, 8 / 4 / 264 : ___ मो वा। ५-पातञ्जल महाभाष्य, पस्पशाह्निक : एकस्यैव गोशब्दस्य गावी-गोणी-गोता-गोपोतलिकेत्यादयोऽनेकेऽपशब्दाः / ६-देशीनाममाला, 14 : देसविसेसपसिद्धीइ भण्णमाणा अणन्तया हुन्ति / तम्हा अणाइपाइयपयट्टभासाविसेसओ देसी // .