Book Title: Dashvaikalik Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ दशवकालिक : एक समीक्षात्मक अध्ययन विनय के बिना ज्ञान, दर्शन और चारित्र की आराधना सम्पन्न नहीं हो सकती और धर्म-शासन की व्यवस्था नहीं बन सकती, इसलिए भगवान् ने विनय को धर्म का मूल कहा है।' साधना का उत्कर्ष अप्रमाद से होता है। अप्रमाद के मुख्य साधन हैं—स्वाध्याय और ध्यान / नींद, अट्टहास और काम-कथा—ये उनके बाधक हैं, इसलिए भगवान् ने कहा-नींद को बहुमान मत दो, अट्टहास मत करो और काम-कथा मत करो। निष्कर्ष की भाषा में—(१) अहिंसा और उसके विविध पहलू सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह आदि ; (2) संयमी जीवन की सुरक्षा ; ( 3 ) प्रवचन-गौरव ; (4) परीषह-सहन ; (5) विनय और (6) साधना का उत्कर्ष—ये मूलभूत दृष्टियाँ हैं। इनके द्वारा भगवान महावीर के आचार-निरूपण की यथार्थता देखी जा सकती है। सारे विधि-निषेधों को एक दृष्टिकोण से देखने पर जो असमंजसता आती है, वह समग्र-दृष्टि से देखने पर नहीं आती। आचार-दर्शन की ये दृष्टियाँ वे रेखाएँ हैं, जिनका एकीकरण निग्रन्थ के जीवन का सजीव चित्र बन जाता है। साधना के उत्कर्ष का दृष्टिकोण : ___ साधना का उत्कर्ष पाए बिना साध्य नहीं सधता। सिद्धि का मतलब है साधना का उत्कर्ष। आत्मार्थी का साध्य मोक्ष होता है। उसका साधन है धर्म / उसकी साधना के तीन अंग हैं-अहिंसा, संयम और तप। इनसे तादात्म्य पाने का नाम 'योग' है। आचार्य हरिभद्र ने मोक्ष से जोड़ने वाले समूचे धर्म-व्यापार को योग माना है। आचार्य हेमचन्द्र में मोक्ष के उपायभूत सम्यक ज्ञान, दर्शन और चारित्र को योग कहा है। १-दशवकालिक, 9 / 2 / 2 : एवं धम्मस्स विणओ मूलं / २-वही, 8141 / ३-योगबिन्दु, 31 : मोक्खेण जोयणाओ, जोगो सव्वो वि धम्म-वावारो।" ४-(क) योगशास्त्र : मोक्षण योजनाद् योगः / (ख) अभिधानचिंतामणि, 1177 : मोक्षोपायो योगो ज्ञानश्रद्धानचरणात्मकः /