Book Title: Dashvaikalik Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ 88 दशवकालिक : एक समीक्षात्मक अध्ययन का मूल इन्हीं को माना गया। अहिंसा ही धर्म है, शेष महाव्रत उसकी सुरक्षा के लिए हैं—यह विचार आगम के उत्तरवर्ती-साहित्य में बहुत दृढ़ता से निरूपित हुआ है। धर्म का मौलिक रूप सामायिक-चारित्र-समता का आचरण है। इसके अखण्ड रूप को निश्चय-दृष्टि से अहिंसा कहा जा सकता है और व्यवहार-दृष्टि से उसे अनेक भागों में बाँटा जा सकता है। आचारांग के नियुक्तिकार ने संयम का सामान्यतः एक रूप माना है और भेद करते-करते वे उसे अठारह हजार की संख्या तक ले गए हैं। उन्होंने निरूपण, विभाजन और जानकारी की दृष्टि से पाँच महाव्रत की व्यवस्था को सरलतम माना है। - पाँच महाव्रतों को दशवकालिक की आत्मा माने तो शेष विषय को उसका पोषकतत्त्व कहा जा सकता है। महाव्रतों की भावनाएँ: पाँच महाव्रतों की सुरक्षा के लिए पचीस भावनाएँ हैं 14 नीचे बाई ओर प्रश्न १-(क) पंचसंग्रह : एक्कं चिय एकवयं, निद्दिटुं जिणवरेहिं सव्वेहिं / पाणाइवायविरमण, सव्वसत्तस्स रक्खट्टा // (ख) हारिभद्रीय अष्टक, 16 / 5 : अहिंसैषा मता मुख्या, स्वर्गमोक्षप्रसाधनी। एतत्संरक्षणार्थ च, न्याय्यं सत्यादिपालनम् // (ग) हारिभद्रीय अष्टक, 16 // 5 वृत्ति : अहिंसाशस्यसंरक्षणे वृतिकल्पत्वात् सत्यादिवतानाम् / २-आचारांग नियुक्ति, गाथा 293, 294 / ३-वही, गाथा 295 / ४-(क) आचारांग नियुक्ति, गाथा 296 : तेसिं च रक्खणट्ठाय, भावणा पंच पंच इक्विक्के / (ख) तत्त्वार्थसूत्र, 7 / 3 : तत्स्थैर्यार्थ भावनाः पंच पंच।