Book Title: Dashvaikalik Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ ११-दशवकालिक और आचारांग-चूलिका ___जिस प्रकार दशवकालिक के अन्त में दो चूलिकाएँ हैं, उसी प्रकार आचारांग के साथ पाँच चूलिकाएँ जुड़ी हुई हैं।' चार चूलिकाओं का एक स्कन्ध है / यही आचारांग का द्वितीय श्रुत-स्कन्ध कहलाता है। पाँचवीं चूलिका का नाम 'निशीथ' है / 2 नियुक्तिकार के अनुसार प्रथम चार चूलिकाएँ आचारांग के अध्ययनों से उद्धृत की गई हैं और 'निशीथ' प्रत्याख्यान-पूर्व की तृतीय वस्तु के आचार नामक बीसवें प्राभृत से उद्धृत की गयी है। दशवकालिक और आचारांग-चूलिका में विषय और शब्दों का बहुत ही साम्य है। संभव है इनका उद्धरण किसी एक ही शास्त्र से हुआ हो। दशवकालिक नियुक्ति के अनुसार धर्म-प्रज्ञप्ति ( चतुर्थ अध्ययन ) आत्म-प्रवाद ( सातवें ) पूर्व से, पिण्डैषणा ( पाँचवाँ अध्ययन ). कर्म-प्रवाद ( आठवें ) पूर्व से, वाक्यशुद्धि ( सातवाँ अध्ययन ) १-आचारांग नियुक्ति, गाथा 11 : णवबंभचेरमइओ अट्ठारसपयसहस्सिओ वेओ। हवइ य सपंचचूलो बहुबहुतरओ पयग्गेणं // . २-वही, गाथा 347 : आयारस्स' भगवओ चउत्थचलाइ एस निज्जुत्ती। पंचम चूल निसीहं तस्स य उवरि भणीहामि // ३-वही, गाथा 288-291 : बिइअस्स य पंचमए अट्ठमगस्स बिइयंमि उद्देसे / भणिओ पिण्डो सिज्जा वत्थं पाउग्गहो चेव // पंचमगस्स चउत्थे इरिया वणिजई समासेणं / छठुस्स य पंचमए भासजायं वियाणाहि // सत्तिक्कगाणि सत्तवि निज्जूढाई महापरिन्नाओ। सत्थपरिन्ना भावण निज्जूढाओ धुयविमुत्ती // आयारपकप्पो पुण पच्चक्खाणस्स तइयवत्यूओ / आयारनामधिजा वीसइमा पाहुडच्छेया //