Book Title: Dashvaikalik Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ 51 1. बहिरङ्ग परिचय : चूलिका का है। आचारांग की व्याख्या में दशवकालिक की और दशवकालिक की व्याख्या में आचारांग की चूलिका का उल्लेख हुआ है / ' आगमों से सम्बन्ध रखने वाली चूलिकाएँ और संग्रहणी ग्रन्थ अनेक हैं / मूल आगम और संग्रहणी व चूलिका के कर्ता एक नहीं रहे हैं। संग्रहणी व चूलिका बहुधा भिन्नभिन्न कर्तृक प्रतीत होती हैं फिर भी मूल शास्त्र की जानकारी के लिए अत्यन्त उपयोगी होने के कारण उनको आगम के अंग रूप में स्वीकार किया गया है। परिशिष्ट-पर्व के अनुसार नन्द-साम्राज्य के प्रधान मंत्री शकडाल के द्वितीय पुत्र श्रीयक जैन मुनि बने / सम्वत्सरी पर्व आया / उस दिन उपवास करना जैन मुनि के लिए अनिवार्य है / वे उपवास करने में असमर्थ थे। उनकी बहिन यक्षिणी, जो साध्वी थी, को इसका पता चला। वह भाई के पास आई और ज्यों-त्यों प्रयत्न कर उनसे उपवास करवाया। श्रीयक उपवास में चल बसे। बहिन के मन में सन्देह हो गया कि वह मुनिघातिका है। आचार्य ने कहा-"तुम घातिका नहीं हो। तुमने समझाया था, किन्तु बलप्रयोग नहीं किया था।" फिर भी सन्देह नहीं मिटा। उस समय शासन-देवी उसे महाविदेह क्षेत्र में सीमंधर स्वामी के पास ले गई। सीमंधर स्वामी ने उसे निर्दोष बताया। केवली के मुख से अपने को निर्दोष सुन वह निःशंक हो गई। वहाँ से लौटते समय भगवान् सीमंधर ने उसे चार अध्ययन दिए। वह वापस अपने क्षेत्र में आई / श्रीसंघ ने उनमें से पिछले दो अध्ययन दशवकालिक के साथ जोड़ दिए।२ नियुक्ति की एक गाथा में इसका उल्लेख मिलता है। चूर्णिकार इसके बारे में मौन हैं। टीकाकार ने दूसरी १-(क) आचारांग 21 वृत्ति, पत्र 289 : ... यथा दशवैकालिकस्य चूडे / . (ख) हारिभद्रीय टीका, पत्र 269 : आचारपञ्चचूडावत् / २-परिशिष्ट-पर्व, 9 / 9 / 83-100 / ३-दशवकालिक नियुक्ति, गाथा 447 : आओ दो चूलियाओ आणीया जक्खिणीए अज्जाए। .सीमंधरपासाओ भवियाणविबोहणढाए //