Book Title: Dashvaikalik Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ 1. बहिरङ्ग परिचय : दशवकालिक और आचारांग-चूलिका 55 अध्ययन के दूसरे उद्देशक से पिण्डैषणा अध्ययन उद्धृत किया गया है। छठे ( धूत ) अध्ययन के पाँचवें उद्देशक से भाषा-जात का निर्वृहण किया गया है।' दशवकालिक के पिण्डैषणा ( पाँचवें अध्ययन ) और वाक्यशुद्धि ( सातवें अध्ययन ) में तथा आचारांग-चूला के पिण्डैषणा ( प्रथम अध्ययन ) और भाषाजात ( चौथे अध्ययन ) में शाब्दिक और आर्थिक-दोनों प्रकार की पर्याप्त समता है। उसे देखकर सहज ही यह कल्पना हो सकती है कि इनका मूल स्रोत कोई एक है। इन दोनों आगमों की नियुक्तियों के कर्ता एक ही व्यक्ति हैं / 2 उनके अनुसार इनके मूल स्रोत भिन्न हैं / भाचारांग-चूला के अध्ययनों का स्रोत आचारांग और दशवकालिक के अध्ययनों का मोत पूर्व है। किन्तु नियुक्तिकार ने दशवकालिक के निर्वृहण के बारे में जो संकेत किया है, वह भी कम महत्त्वपूर्ण नहीं है। यदि उस दूसरे विकल्प को स्वीकार किया गाय तो दशवकालिक के इन दो अध्ययनों का स्रोत वही हो सकता है, जो आचारांगचूला के पिण्डैषणा और भाषाजात का है। पूर्व अभी उपलब्ध नहीं हैं, इसलिए निर्यहण के पहले पक्ष के बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता है। दूसरे पक्ष की दृष्टि से परामर्श किया जाए तो दशवकालिक का अधिकांश भाग उपलब्ध अंगों व अन्य आगमों में प्राप्त हो सकता है। कुछ आधुनिक विद्वानों ने आचारांग-चूला के पिण्डैषणा और भाषाजात १-आचारांग नियुक्ति, गाथा 288-289 : बिइअस्स य पंचमए अट्ठमगस्स बिइयंमि उद्देसे / मणिओ पिण्डो ' // ................ छटस्स य पंचमए भासज्जायं वियाणाहि // ( विशेष जानकारी के लिए इन गाथाओं की वृत्ति देखें।) २-आवश्यक नियुक्ति, गाथा 84-86 : आवस्सयस्स दसकालियस्स तह उत्तरज्झमायारे / सूयगडे निज्जुत्तिं वोच्छामि तहा दसाणं च // कप्पस्स य निज्जुत्तिं ववहारस्सेव परमनिउणस्स। सूरिअपण्णत्तीए वोच्छं इसिमासिआणं च // एएसिं 'निज्जुत्तिं वोच्छामि अहं जिणोवएसेणं / आहरण हेउ- कारण- पय-निवहमिणं समासेणं //