Book Title: Dashvaikalik Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ दशवकालिक : एक समीक्षात्मक अध्ययन ११-क्रम-भेद जा य बुद्धेहिंणाइन्ना ( 7 / 2 ) ___ श्लोक के इस चरण में असत्याऽमृषा का प्रतिपादन है। वह क्रम-दृष्टि से 'जा य सच्चा अवत्तव्वा' के बाद होना चाहिए था, किन्तु पद्य-रचना की अनुकूलता की दृष्टि से विभक्ति-भेद, वचन-भेद, लिङ्ग-भेद, क्रम-भेद हो सकता है, इसलिए यहाँ क्रम-भेद किया गया है। तरित्तु ते ओहमिणं दुरुत्तरं ( 6 / 2 / 23) यह पद 'खवित्त कम्म' के पश्चात् होना चाहिए था। किन्तु यहाँ पश्चाद्दीपक सूत्र रचना-शैली से उसका पहले उपन्यास किया गया है, इसलिए यह निर्दोष है / 2 १-(क) जिनदास चूर्णि, पृष्ठ 244 : चउत्थीवि जा अ बुद्धेहिं णाइनागहणणं असच्चामोसावि गहिता, उक्कमकरणे मोसावि गहिता एवं बन्धानुलोमत्यं, इतरहा सच्चाए, उवरि'मा भाणियब्वा, गंथाणुलोमताए विभत्तिभेदो होज्जा वयणभेदो वसु(थी) पुमलिंगभेदो व होज्जा अत्थं अमुचंतो। (ख) हारिभद्रीय टीका, पत्र 213 : या च 'बुद्धः' तीर्थकरगणधरैरनाचरिता असत्यामृषा आमंत्रण्याज्ञापन्या दिलक्षणा। २-जिनदास चूर्णि, पृष्ठ 317 : 'पुट्विं खवित्त कम्ममिति' वत्तव्वे कहं तरित्तु ते ओहमिणं दुरुत्तरंति पुव्वभणियं ? आयरिओ आह—पच्छादीवगो णाम एस सुत्तबंधोत्तिकाऊण न दोसो भवइ।