Book Title: Dashvaikalik Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ . 1. बहिरङ्ग परिचय : शरीर-परामर्श का बोध हो जाता है। नियुक्ति के अनुसार पहले अध्ययन ( द्रुमपुष्पिका ) का विषय ( अर्थाधिकार ) धर्म-प्रशंसा है। धर्म का पालन धृति के द्वारा ही किया जा सकता है, यह दूसरे अध्ययन ( श्रामण्य-पूर्वक ) का विषय है। तीसरे अध्ययन ( क्षुल्लकाचार ) में आचार का संक्षिप्त वर्णन है। चौथे अध्ययन (धर्म-प्रज्ञप्ति या षड्-जीवनिका ) में आत्मसंयम के उपाय और जीव-संयम का निरूपण है। पाँचवें अध्ययन ( पिण्डैषणा ) में भिक्षा की विशुद्धि, छठे ( महाचार कथा ) में विस्तृत आचार, सातवें ( वाक्य-शुद्धि ) में वचनविभक्ति, आठवें ( आचार-प्रणिधि ) में प्रणिधान, नवे ( विनय-समाधि ) में विनय और दसवें ( सभिक्षु ) में भिक्षु के स्वरूप का वर्णन है। जिसका चिन्तन संयम से डिगते हुए भिक्षु का आलम्बन बन सके, यह पहली चूलिका ( रतिवाक्या ) का विषय है। संयम में रत रहने से होने वाली गण-वृद्धि और धर्म के प्रयास का फल दूसरी चूलिका ( विविक्तचर्या ) में बतलाया है।' ___ व्याख्याकारों के अभिमत में अध्ययनों का क्रम विषय-क्रम के अनुसार हुआ है / नव-दीक्षित भिक्षु को धर्म में सम्मोह न हो, इसलिए उसे धर्म का महत्त्व बतलाना चाहिए—यह इस आगम का ध्रुव-बिन्दु है। धर्म का आचरण धृति-पूर्वक ही किया जा सकता है; धृति आचार में होनी चाहिए; आचार का स्वरूप२ षटकाय के जीवों की दया और पाँच महावत हैं—यह क्रमशः दूसरे, तीसरे और चौथे अध्ययन के क्रम का हेतु है। धर्माचरण का साधन शरीर है। वह खान-पान के बिना नहीं टिकता। आधार की आराधना करने वाला हिंसक पद्धति से न खाए, इसलिए धर्म-प्रज्ञप्ति के बाद पिण्डैषणा का १-दशवकालिक नियुक्ति, गाथा 20-24 : पढमे धम्मपसंसा सो य इहेव 'जिणसासणम्मित्ति / बिइए धिइए सक्का काउं जे एस धम्मोत्ति // तइए आयारकहा उ खुड्डिया आयसंजमोवाओ। तह जीवसंजमोऽवि य होइ चउत्थं मि अज्झयणे // भिक्ख विसोही तवसंजमस्स गुणकारिया उ पंचमए / छठे आयारकहा महई जोग्गा महयणस्स // वयण विभत्ती पुण-सत्तमम्मि पणिहाणमट्ठमे भणियं / णवमे विणओ दसमे समाणियं एस भिक्खुत्ति // दो अज्झयणा चूलिय विसीययंते थिरीकरणमेगं / बिइए विवित्तचरिया असीयणगुणाइरेगफला // २-अगस्त्य चूर्णि आयारो छक्कायदया पंचमहत्वयाणि /