Book Title: Dashvaikalik Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ दशवकालिक : एक समीक्षात्मक अध्ययन नामकरण : प्रस्तुत आगम के दो नाम उपलब्ध होते हैं—दसवेयालिय' ( दशवकालिक ) और दसकालिय२ ( दशकालिक ) / यह नाम 'दस' और 'वैकालिक' या 'कालिक' इन दो पदों से बनता है। दस (दश) शब्द इसके अध्ययनों की संख्या का सूचक है। इनकी पूर्ति विकाल-वेला में हुई इसलिए इसे वैकालिक कहा गया। सामान्य विधि के अनुसार आगम-रचना पूर्वाह्न में की जाती है किन्तु मनक को अल्पायु देख आचार्य शय्यम्भव ने तत्काल—अपराह्न में ही इसका उद्धरण शुरू किया और यह विकाल में पूरा हुआ। ___ स्वाध्याय का काल चार प्रहर—दिन और रात के प्रथम और अंतिम प्रहर—का है। यह स्वाध्याय-काल के बिना ( विकाल में ) भी पढ़ा जा सकता है, इसलिए इस आगम का नाम 'दशवैकालिक' रखा गया है। यह चतुर्दश-पूर्वी-काल से आया हुआ है अथवा काल को लक्ष्य कर किया हुआ हैं, इसलिए इसका नाम 'दशवैका लिक' रखा गया है। इसका दसवाँ अध्ययन वैतालिक नाम के वृत्त में रचा हुआ है, इसलिए इसका नाम 'दसवैतालिय' हो सकता है। ये अगस्त्य चूर्णि के अभिमत हैं / 3 . १-(क) नंदी, सूत्र 46 / (ख) दशवैकालिक नियुक्ति, गाथा 6 / २-दशवैका लिक नियुक्ति, गाथा 1,7,12,14,15 / ३-अगस्त्य चूर्णि : : उभयपद निप्फण्णं नामं दसकालियं / तत्थ कालादागयं विसेसिज्जति चोहसपुस्विकालाता भगवतो वा पंचमातो पुरिसजुगातो, 'तत आगतः' (पाणि 4 / 3 / 74 ) इति उप्रत्ययः, कालं व सव्वपज्जाहिं परिहीयमाणमभिक्खकयं एत्थ 'अधिकृत्य कृते ग्रन्थे' (पाणि 4 / 3 / 87 ) स एव उप्रत्ययः तस्य इय आदेशः, दशकं अज्झयणाणं कालियं निरुत्तेण विहिणा ककारलोपे कृते दसकालियं / अहया वेकालियं मंगलत्थं पुव्वण्हे सत्यारंभो भवति, भगवया पुण अज्जसेज्जभवेणं कहमवि अवरोहकाले उवयोगो कतो, कालातिवाय विग्घपरिहरणाय निज्जूटमेव अतो विगते काले विकाले दसकमज्झयणाणं कतमिति दसवेकालियं चउपोरिसितो सज्झायकालो तम्मि विगते वि पदिज्जतीति विगय कालियं दसवेकालियं / दसमं वा वेता लियोपजातिवृत्तेहिं णियमितमझयणमिति दसवेतालियं।