Book Title: Dashvaikalik Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ 27 1. बहिरङ्ग परिचय : व्याकरण-विमर्श सुखमुखोच्चारण और ग्रन्थ-लाघव माना है। हरिभद्र ने वचन-परिवर्तन का कारण रचनाशैली की विचित्रता के अतिरिक्त विपर्यय और माना है / प्राकृत में विभक्ति और वचन का विपर्यय होता है। अभिहडाणि (3 / 2) यह शब्द बहुवचनांत है। अभिहृत के स्वग्राम-अभिहृत, परग्राम-अभिहृत आदि प्रकारों की सूचना देने के लिए ही बहुवचन का प्रयोग किया गया है / गिम्हेसु (3 / 12) ग्रीष्म-ऋतु में यह कार्य ( आतापना ) प्रति वर्ष करणीय है, इसलिए इसमें बहुवचन है।' . .. मन्ने (6 / 18) प्राकृत शैली से यहाँ बहुवचन में एकवचन का प्रयोग है और साथ-साथ पुरुषपरिवर्तन भी है। इसिणा (6 / 46) चूर्णिद्वय के अनुसार यह तृतीया का एकवचन है / 6 टीकाकार के अनुसार षष्ठी का बहुवचन / " .. १-जिनदास चूर्णि, पृष्ठ 82 : विचित्तो सुत्तनिबंधो भवति, सुहमुहोच्चारणत्थं गंथलाघवत्थं च। २-हारिभद्रीय टीका, पत्र 91 : __देखिए पृ० 26 पा०टि०५ / 3. वही, पत्र 116 : अभ्याहृतानि बहुवचनं स्वग्रामपरग्रामनिशीथादिभेदख्यापनार्थम् / ४-वही, पत्र 119 : ग्रीष्मादिषु बहुवचनं प्रतिवर्षकरणज्ञापनार्थम्। ५-वही, पत्र 198 : 'मन्ये' मन्यन्ते प्राकृतशैल्या एकवचनम्, एवमाहुस्तीर्थकरगणधराः / ६-(क) अगस्त्य चूर्णि : इसिणा–साधुणा। (ख) जिनदास चूर्णि, पृष्ठ 227 : इसिणा णाम साधुणा। ७-हारिभद्रीय टीका, पत्र 203 : - ऋषीणां साधूनाम् /