Book Title: Dashvaikalik Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ 1. बहिरङ्ग परिचय : दशवैकालिक के कर्ता और रचना-काल 15 हजार प्रकीर्णककार साधु थे और उन्होंने चौदह हजार प्रकीर्णकों की रचना की।' मलयगिरि ने 'एवमाइयाई' (नन्दी सूत्र 46) की व्याख्या में उत्कालिक और कालिक—दोनों प्रकार के आगमों को प्रकीर्णक माना है / 2 उत्कालिक सूत्रों की गणना में दशवैकालिक का स्थान पहला है। इसके आधार पर यह अनुमान किया जा सकता है कि भगवान् महावीर के समय दशवकालिक नाम का कोई प्रकीर्णक रहा हो और शय्यम्भव सूरि ने प्रयोजनवश उसका रूपान्तर किया हो। टीका में भी इसके नियत और अनियत रूप की चर्चा का उल्लेख मिलता है। किसी ने पूछा-दशवकालिक नियत-श्रुत है ? कारण कि ज्ञात-धर्मकथा के उदाहरणात्मक अध्ययन, ऋषि-भाषित और प्रकीर्णक श्रुत अनियत होता है। शेष सारा श्रुत प्रायः नियत होता है / दशवैकालिक नियत-श्रुत है। उसमें राजीमती और रथनेमि का अभिनव उदाहरण क्यों ? इसके समाधान में टीकाकार ने लिखा है कि नियत-श्रुत का विषय प्रायः नियत होता है; सर्वथा नहीं। इसलिए इस अभिनव उदाहरण का समावेश आपत्तिजनक नहीं है / इस प्रमाण के आधार पर जयाचार्य की कल्पना को महत्त्व दिया जा सकता है। इसका फलित यह होगा कि शय्यम्भव सूरि ने दशवकालिक के बृहत् रूप का लघुकरण किया है। तालार्य की दृष्टि से देखा जाए तो इन तीनों मान्यताओं के फलितार्थ में कोई अन्तर नहीं है / शय्यम्भव सूरि ने चाहे चौदह पूर्वो से या द्वादशांगी से इसे उद्धृत किया हो, चाहे इसके बृहत् रूप को लघु रूप दिया हो, इसकी प्रामाणिकता में कोई बाधा नहीं आती। निर्ग्रहण ( उद्धरण ) और लघकरण ये दोनों रूपान्तर हैं। प्रामाणिकता की दृष्टि से इन दोनों प्रक्रियाओं में कोई अन्तर नहीं है। प्रयोजनवश आगम-पुरुष को ऐसा अधिकार भी है। १-नन्दी, सूत्र 46 : चोद्दस-पइन्नगसहस्साई भगवओ वद्वमाणसाभिस्स / .. २-वही, सूत्र 46 वृत्ति : प्रकीर्ण करूपाणि चाययनानि कालिकोत्कालिकभेद भिन्नानि / ३-दश० हारिभद्रीय टीका, पत्र 99 : अपरस्त्वाह---दशवैकालिकं नियतश्रुतमेव, यत उक्तम्णायझयणाहरणा, इसिभासियाओ पइन्नयसुया य / एस होति अणियया, णिययं पुण सेसभुवस्सन्नं // तत्कथमभिनवोत्पन्न मिदमुदाहरणं युज्यते इति ?, उच्यते, एवम्भूताथस्यैव नियत श्रुतेऽपि भावाद्, उत्सन्नग्रहणाच्चादोषः, प्रायो नियतं, न तु सर्वथा नियतमेवेत्यर्थः।