Book Title: Dashvaikalik Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ 1. बहिरङ्ग परिचय : जैन आगम और दशवकालिक 7 शब्द-ज्ञान की प्रामाणिकता और अप्रामाणिकता वक्ता पर निर्भर है। आप्त का वचन विसंवादी नहीं होता, इसलिए उसका प्रामाण्य होता है। वेदान्त के आचार्यों ने इसे इस रूप में प्रतिपादित किया है कि जिस वाक्य का तात्पर्यार्थ प्रमाणान्तर से बाधित नहीं होता, वह वाक्य प्रमाण होता है / 1 प्रमाणान्तर से वही वाक्य बाधित नहीं होता, जो आप्त-पुरुष ( या आगम-पुरुष ) द्वारा प्रतिपादित होता है। इस प्रकार आगम और आप्त-पुरुष सम-रेखा में स्थित हो जाते हैं। आगम और श्रुत के अर्थ में 'सूत्र' शब्द का प्रयोग भी हुआ है / 2 श्रुत, सूत्र, ग्रन्थ, सिद्धान्त, शासन, आज्ञा, वचन, उपदेश, प्रज्ञापना और आगम इन्हें एकार्थवाची कहा गया है। सूत्र का प्रयोग आगम के विशेषण के रूप में भी होता है। इसका सम्बन्ध प्रधानतया संकलना से है। भगवान् महावीर ने जो उपदेश दिया ( अथवा जो विस्तार है ) वह अर्थागम और गणधरों ने उसे गम्फित किया ( अथवा जो संक्षेप है ) वह 'सूत्रागम' और इन दोनों का समन्वित रूप 'तदुभयागम कहलाता है। दोनों आगमों में प्राप्त अन्तर का अध्ययन करने के बाद भी आचारांग की प्रथम चूला की पिण्डैषणा और भाष्यगत के निर्माण में दशवकालिक का योग है—इस अभिमत को अस्वीकार नहीं किया जा सकता। दशवकालिक की रचना आचारांग चूला से पहले हो चुकी थी, इसका पुष्ट आधार प्राप्त होता है / प्राचीनकाल में आचारांग ( प्रथम श्रुतस्कंध ) पढ़ने के बाद उत्तराध्ययन पढ़ा जाता था, किन्तु दशवकालिक की रचना के पश्चात् वह दशवकालिक के बाद पढ़ा जाने लगा। १-वेदान्त परिभाषा, आगम परिच्छेद, पृष्ठ 108 : यस्य वाक्यस्य तात्पर्य विषयीभूतसंसर्गो मानान्तरेण न बाध्यते तद् वाक्यं प्रमाणम् / २-दशवकालिक चूलिका, 2011 : सुत्तस्स मग्गेण चरेज्ज भिक्खू / ३-(क) अनुयोगद्वार, सूत्र 51 : सुयसुत्तगंथसिद्धंत सासणे आण वयण उवएसे / पन्नवण आगमेवि य एगट्ठा पज्जवा सुत्ते॥ (ख) विशेषावश्यक भाष्य, गाथा 897 / ४-अनुयोगद्वार, सूत्र 704 : अहवा आगमे तिविहे पण्णत्ते, तंजहा—सुत्तागमे अत्थागमे तदुभयागमे /