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श्री अजितनाथस्तुति |
लिये जो जीव इस धर्मको अपने हृदय में धारण करलेते हैं मोक्ष सुखों को अवश्य प्राप्त कर लेते हैं ।
भव्यात्मनां नाथ तवैव मूर्तिः प्रतिक्षणं पुण्यनिबंधिनी च । स्वर्गप्रदात्री धनधान्यदात्री
पापस्य हंत्री नरकार्गला च ॥६॥
अर्थ- हे नाथ ! आपकी मूर्ती भव्य जीवोंको प्रतिक्षण पुण्य उत्पन्न करनेवाली है, स्वर्ग देनेवाली है, धन धान्य देनेचाली है, पापको नाश करनेवाली है और नरकको रोकनेके लिये अर्गल वा वेंडा के समान हैं ।
त्वं ब्रह्मवेत्ता सममित्रशत्रुः ध्यानामि कर्मेन्धननाशकारी ।
त्वमेव मोक्षस्य सुखस्य दाता मयापि वंद्यो सततं प्रपूज्यः ॥७॥
अर्थ - हे भगवन् ! आप परम ब्रह्मके जाननेवाले हैं, शत्रु मित्र सबको समान समझनेवाले हैं, ध्यानरूपी अग्निसे कर्मरूपी ईंधनको जलानेवाले हैं और आप ही मोक्षसुखके देनेवाले हैं इसीलिये हे नाथ, मैं भी आपकी सदा वंदना करता हूं और सदा आपकी पूजा करता हूं ।