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श्री चतुर्विशति जिनस्तुति ।
अर्थ - हे भगवन् ! देवोने, तिर्यचोंने, मनुष्योंने, भूतोंने, क्रूर जीवोंने और कुटम्बी लोगोने जो मुझे तीव्र दु:ख दिया है उसका नाम भी इससमय भयंकर प्रतीत होता है। हे प्रभो ! उसी दुःखसे मैं इस ससाररूपी समुद्र में परिभ्रमण कर रहा हू । अब मैं उसी संसाररूपी समुद्रसे पार होनेके लिये भक्तिपूर्वक आपके चरण कमलो में आ पड़ा हू । हे नाथ ! आपको जो अच्छा लगे सो करिये । वह आपका किया हुआ कार्य मुझे सर्वथा प्रमाण होगा ।
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