________________
२६ श्रीशान्तिसागरचरित्र ।
अर्थ- आचार्य शांति मागरके उपदेशसे इस संसारमें कितने ही लोग धार्मिक होगये, कितने ही व्रती होगये, कितने ही धर्मकी प्रभावना करनेवाले होगये, कितने ही ब्रह्मचारी होगये, कितने ही क्षुल्लक होगये और कितने ।
कितने ही शुद्ध सम्यग्दशनको धारण करनेवाले होगये। इनके सिवाय तीन मुनि हुए। उनमेंसे दयालु गुरुभक्त और नीतिको जाननेवाले वीरसागर हैं, क्षमाके निधि योगी और तपस्वी श्री नेमिमागर हैं और शांति देनेवाले दृढव्रती दूसरे नेमिसागर हैं। ये तीनों ही मुनिधर्मको वढानेवाले हैं। इसप्रकार आचार्य शांतिसागरके निमित्तसे दक्षिण देशमें धर्मकी महाप्रभावना हुई है।
इति दक्षिणदिक् सन्धिः ।
अथद्वितीयसंधिः। पूनमचन्द्रस्य पुत्रो घासीलालो महामनाः । दाडिमचन्द्रस्तत्पुत्रो गेंदमल्लो द्वितीयकः ॥३॥ तृतीयों मोतीलालश्च तत्पत्त्यश्च सपुत्रकाः। शान्तिसागर सूरेश्च वंदनार्थं समागताः ॥४॥ वंदित्वा शुभसावन परमोत्साहनिर्भरः। प्रार्थयामास सः श्रेष्ठिः यात्रार्थ शांतिसागरम् ॥५॥ सम्मेदशैलयात्रार्थ गन्तुकामः ससंघकः । भवन्तोषि दयां कृत्वागच्छन्तु मयका सह ॥६॥