Book Title: Chaturvinshati Jin Stuti Shantisagar Charitra
Author(s): Lalaram Shastri
Publisher: Ravjibhai Kevalchand Sheth

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Page 164
________________ श्रीशान्तिसागरचरित्र | धर्मध्यानं धर्मचच पंडितैः धार्मिकैः सह । स्वाध्यायं प्रत्यहं कुर्वन् वर्षायोगं व्यतीतवान् ॥४९ अर्थ- उन आचार्यने अनेक पंडित और धार्मिकों के साथ धर्मचर्चा करते हुए, धर्मध्यान करते हुए और प्रतिदिन स्वाध्याय करते हुए, वर्षायोग व्यतीत किया । ततो चलत्ससंघेन विहरन् शांतिसागरः । धर्ममुद्योतयन् तत्र देशे बुंदेलखण्ड के ॥४१॥ क्रमात् प्राप्तः संसंघश्च ललितं ललितंपुरम् । मिलित्वा श्रावकैः श्रेष्ठैः कृतस्तत्रोत्सवो महान् ॥ धर्मयोग्यं शुभं क्षेत्रं श्रावकान् धर्मवत्सलान् । दृष्ट्रा तेन सुसंधेन वर्षायोगो धृतस्तदा ||४३|| ३५ अर्थ - तदनंतर वे आचार्य शांतिसागर अपने संघके साथ वहांसे चले। उस बुंदेलखंड क्षेत्र में विहार करते हुए और धर्मका उद्योत करते हुए, अनुक्रमसे चलकर संघके साथ सुंदर ललितपुर नगर में पहुंचे । वहाँपर सब श्रावकोंने मिलकर भारी उत्सव मनाया। आचार्य महाराजने देखा कि यह क्षेत्र शुभ है और धर्ममान के योग्य है तथा यहांके लोग धर्मप्रेमी हैं यही समझकर उन्होंने पर वर्षायोग धारण किया । सरस्तटे गिरौ रम्ये श्मशाने जिनमंदिरे | ध्यानं जपं तपः कुर्वन् वर्षायोगं व्यतीतवान् ॥४४

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