Book Title: Chaturvinshati Jin Stuti Shantisagar Charitra
Author(s): Lalaram Shastri
Publisher: Ravjibhai Kevalchand Sheth

View full book text
Previous | Next

Page 167
________________ श्रीशान्तिसागरचरित्र । ~ ~ जैनेश्वरी दीक्षा देकर मुनि बनाया था। क्षुल्लकोऽजितकीर्तिश्च विरक्तस्तत्र दीक्षितः । मुनयः क्षुल्लकाः सर्वे वीतरागः दयालवः ॥५४॥ ___अर्थ- विरक्त हुए, क्षुल्लक अजितकीर्ति भी वहींपर दीक्षित हुए थे । इसप्रकार दीक्षित हुए वे सब मुनि और क्षुल्लक वीतराग थे तथा दयालु थे। ततः सम्बोधयन् मार्गे विहरन तत्र देशके । ग्वाल्हेरनगरं प्राप्तः दिनानि कतिचित्स्थितः ।। ___अर्थ-फिर उसदेशमें विहार करते हुए और मार्गमें जीवों को उपदेश देते हुए ग्वालियर पहुंचे और वहांपर कुछ दिन रहे । प्रार्थनावशतो यातो मक्खनलाल शास्त्रिणः । मोरेनानगरं श्रीमानुपदेष्टुं सुश्रावकान् ॥५६॥ _अर्थ- मक्खनलाल शास्त्रीको प्रार्थनासे श्रीमान् वे आचार्य श्रावकोंको उपदेश देनेके लिये मोरेनानगरमें आये । स्थित्वा कतिदिनं तत्र राजाखेडापुरं गतः।। सहतेस्माखिलैः सार्द्धमुपसर्ग द्विजादिजम् ॥५७॥ अर्थ- मोरेनामें कुछ दिन रहकर राजाखेडा गये और वहांपर उन्होने सब संघके साथ ब्राह्मण आदि मिथ्या दृष्टीयोंका किया हुआ घोर उपसर्ग सहन किया ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188