Book Title: Chaturvinshati Jin Stuti Shantisagar Charitra
Author(s): Lalaram Shastri
Publisher: Ravjibhai Kevalchand Sheth

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Page 177
________________ श्रीशान्तिसागरचरित्र। नगरश्रेष्ठीतिपदं दत्तं तच्छ्रेष्ठिनस्तदा ॥१९॥ न हिंसां कारयिष्यामि कुत्रापि ममदेशके। प्रतिज्ञां धृतवान भूपः सरिदर्शनतः सुधीः॥१०० अर्थ- ब्रह्मचारी सालिगरामने क्षुल्लक व्रत धारण किया और अजितकीर्ति नाम रखकर गुणवान् प्रसिद्ध हुए। वहाँके राजाने संघभक्त शिरोमणिके कराये हुए उस महा उत्सवको देखकर उन सेठको नगरसेठका पद दिया । तथा उन बुद्धिमान महाराजने आचार्य शांतिसागरके दर्शन कर "मैं अपने देशमें हिंसा नहीं कराऊंगा" ऐसी प्रतिज्ञा धारण की। आगतान सकलान् भव्यान प्रतिष्ठामंगलोत्सवे । संबोध्य करुणासिंधुराचार्यश्च ततोऽचलत् ॥२॥ ___अर्थ- उस प्रतिष्ठामंगलोत्सवमें जो भव्यजीव आये थे, उन सवको उपदेश देकर वे दयालु आचार्य आगे चले। मार्गे प्रबोधयन् भव्यान मिथ्याभ्रान्ति विनाशयन् । सवेत्र संचरन् देशे कुर्वन् स विविधं तपः ॥२॥ तथोदयपुरं प्राप्तः पालयंश्च महाव्रतम् । तत्र लखमीचन्द्रश्च छोगालालस्य धर्मिणः ॥३॥ मोतीलालस्य भव्यस्य चांदमल्लगुलाबयोः । प्रार्थनावशतो धीमान पुरं दृष्टा सुधार्मिकम् ॥४

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