________________
४७
श्रीशान्तिसागरचरित्र । ___ अर्थ-व्यावरसे चलकर उस देशमें विहार करते हुए और भव्यजीवोंको उपदेश देते हुए, वे आचार्य शान्तिसागर संघभक्तशिरोमणि सेठ घासीलालकी प्रार्थनासे प्रतिष्ठा महोत्सवको देखते हुए कुछ दिन वहां ठहरे । तदा द्वौ दीक्षितौ साधू गुरुवर्येण शान्तिदौ । वर्णयामि तयो म पापहारि यथाक्रमम् ।।९५॥ प्रथमश्च दयामूर्तिरादिसागरनामकः । मम विद्यागुरुीरः सुधर्मसागरोऽपरः ॥१६॥ मनोहरः सुबुद्धिश्चाविद्याया वंसकारकः । तद्भातरोपि विद्वांसः सरस्वत्याः सुतोपमाः॥९७॥
___ अर्थ- प्रतापगढमें उससमय आचार्य शांतिसागरने दो क्षुल्लकोंको जनेश्वरी दीक्षा दी। आगे मैं पापनाश करनेवाले उन दोनोंके नाम यथा क्रमसे कहता हूं। पहले मुनिका नाम दयामूर्ति आदिसागर है, और दूसरे धीरवीर मेरे विद्यागुरु सुधर्मसागर हैं। ये सुधर्मसागर बहुत मनोज्ञ हैं, अविद्याको नाश करनेवाले हैं तथा इनकी बुद्धि बहुत श्रेष्ठ है। इनके भाई भी सरस्वतीके पुत्रके समान विद्वान हैं। वर्णी सालिगरामश्च क्षुल्लकव्रतमाददे । सुनाम्नाऽजितकीर्तिश्च प्रसिद्धोगुणवानभूत् ॥९८ एवं महोत्सवं दृष्ट्वा तत्रत्योपि प्रजापतिः ।
4