Book Title: Chaturvinshati Jin Stuti Shantisagar Charitra
Author(s): Lalaram Shastri
Publisher: Ravjibhai Kevalchand Sheth

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Page 187
________________ श्री शान्तिसागरचरित्र | मम दुरिर्तनिर्हता कुंथुसिंधोर्गुरुर्यः । भवतु शिवनिमग्नो भव्य कल्याणदाता ॥ ४५ ॥ in چند ५८ अर्थ - जो शांतिसागर देव, देव मनुष्य और मुनियोंके द्वारा पूज्य हैं, राजलोक जिनकी सेवा करते हैं, जो मुझ कुंधुसागरके पापोंको नाश करनेवाले हैं तथा मुझ कुंथुमांगर के ही गुरु हैं और जो भव्यजीवोंको सदा कल्याण देनेवाले हैं ऐसे महात्मा शांतिसागर आचार्य सदा जयशील हो, जयशील हो तथा मोक्षसुखमें निमग्न हो । समाप्तोऽयं ग्रंथः ।

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