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श्री शान्तिसागरचरित्र |
यस्मिन्कुले समुत्पन्नास्तीर्थेशा धर्मनायकाः । तस्मिन्नेव कुले पूते तव जन्म महात्मनः ॥४० अर्थ — जिस कुल में धर्मके स्वामी तीर्थकर उत्पन्न हैं, उसी पवित्र कुल में महात्मा शांतिसागर उत्पन्न हुए हैं हे क्षमावीर ! हे धीर ! कृपाब्धे करुणानिधे । शक्तः शक्रोप्यशक्तोस्ति कथितुं ते चरित्रकम् मम विद्याविहीनस्य मन्दबुद्धेः कथैव का । तथापि तवभक्त्यैव रचितं केवलं मया ॥ ४२ ॥ श्रीमन् तवैव शिष्येण कुंथुसागरयोगिना । शान्तिदं त्वच्चरित्रं च संभूयात्स्वर्गमोक्षदम् ॥४३॥
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अर्थ — हे क्षमाधारण करनेवालोंमें वीर, हे धीर, हे कृपा के सागर, हे करुणानिधि, शक्र वा इन्द्र यद्यपि समर्थ है तथापि आपका चरित्र कहनेके लिये असमर्थ है, फिर भला विद्यारहित और मंद बुद्धिको धारण करनेवाले मेरी तो बात ही क्या है । तथापि हे श्रीमन् ! आपके ही शिष्य मुझ कुंथूसागर सुनिने केवल आपकी भक्तिके वश होकर ही इस चरित्रको बनाया है । ऐसा यह शांति देनेवाला आपका जीवन-चरित्र 'स्वर्ग मोक्षका देनेवाला हो । जयतु जयतु देवः शान्तिसिंधुर्महात्मा । सुरनरमुनिपूज्यः राजलोकैः सुसेव्यः ॥४४॥