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श्रीशान्तिसागरचरित्र । ४९ सरोभिः पर्वतैरम्यं ध्यानयोग्यं तपस्विनाम् । करोतिस्म ससंघोऽसौ वर्षायोगं महामुनिः॥५॥
अर्थ- मार्गमें भव्यजीवोंको उपदेश देते हुए, उनकी मिथ्याभ्रांतियोंको दूर करते हुए, सब देशमें विहार करते हुए, अनेक प्रकारका तपश्चरण करते हुए और महावतोंको पालन करते हुए, वे आचार्य अनुक्रमसे उदयपुर पहुंचे। उदयपुरके सेठ लखमीचन्द्र, छोगालाल, मोतीलाल, चांदमल, गुलाबचन्द आदिकी प्रार्थनासे उन बुद्धिमान् महामुनि आचार्यने उस नगरमें धर्मात्मा लोगोंको देखकर और उस नगरको सरोवर
और पर्वतोंसे मनोहर तथा तपस्वियोंको ध्यानके योग्य देखकर संघके साथ वर्षायोग धारण किया। राजवगैः सदा पूज्यः कुर्वन् धर्मोपदेशनाम् । स संघेन तदा सूरिर्वर्षायोगं व्यतीतवान् ॥६॥
अर्थ- राजवर्गके द्वारा सदा पूज्य ऐसे उन आचायेने धर्मोपदेश देते हुए, अपने समस्त संघके साथ वर्षायोग व्यतीत किया। ततोऽचलत्स संघेन धुलेवनगरं प्रति । तत्र गत्वा च वृषभं नत्वा स्तुत्वा पुनःपुनः ॥७॥ दिनानि कतिचित्स्थित्वा मूरिनिरंगमत्ततः ॥
अर्थ- वहांसे भी सब संघके साथ धुलेवनगरके लिये चले तथा वहां पहुंचकर भगवान् वृषभदेवको बार बार नमस्कार