Book Title: Chaturvinshati Jin Stuti Shantisagar Charitra
Author(s): Lalaram Shastri
Publisher: Ravjibhai Kevalchand Sheth

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Page 182
________________ श्रीशान्तिसागरचरित्रा . . . ., । ५३ अर्थ- इधर आचार्यने दीक्षा देकर अहंदास क्षुल्लक बनाया और जिनमति सुमतिमति दो क्षुल्लिकाएं बनाई। इत्येवं बोधयन् भव्यान् चातुर्मासं व्यतीतवान् । स्वोक्षदो हि मे पूज्यो गुरुवर्यः क्षमानिधिः॥२३ - अर्थ- इसप्रकार भव्यजीवोंको उपदेश देते हुए, स्वर्ग मोक्षके देनेवाले, मेरे पूज्य क्षमा निधि गुरुवर्यने चातुर्मास व्यतीत किया। सर्वसंघ समादाय आचार्यः शान्तिसागरः । तारंगासिद्धिभूमि च वंदनाथ ततोऽचलत् ॥२४॥ अर्थ- तदनंतर आचार्य शांतिसागर स्वामी सब संघको लेकर तारंगा सिद्धिभूमिकी वदना करनेके लिये चले। पभिस्तपस्विभिःसाई तावद्धिः क्षुल्लकैः समम् । साद्धं च क्षुल्लिकाभ्यां हि बहुभिब्रह्मचारिभिः ॥२५ श्रावर्द्विसहस्रश्च कुर्वद्भिव जयध्वनिम् । भूधरं कंपयन प्राप्तः सिद्धक्षेत्रं महामुनिः ॥२६॥ ____ अर्थ-वे महामुनि आचार्य छह तपस्वियोंके साथ, छह क्षुल्लकोके साथ, दो क्षुल्लिकाओं के साथ, बहुतसे ब्रह्मचारियोंके साथ और जयजय शब्द करते हुए दो हजार श्रावकोंके साथ पर्वतको कंपायमान करते हुए सिद्धक्षेत्रपर पहुंचे। वंदित्वा वरदत्तं च तथा सागरदत्तकम् । वारंगं सिद्धक्षेत्रं च कृतकृत्योऽभवत्तदा ॥२७॥

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