Book Title: Chaturvinshati Jin Stuti Shantisagar Charitra
Author(s): Lalaram Shastri
Publisher: Ravjibhai Kevalchand Sheth

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Page 181
________________ श्री शान्तिसागरचरित्र | तदाजां शिरसा धृत्वा सुधमपि दयानिधिः । शेषसंघ समादाय प्राप्त ईडरपत्तनम् ॥ १७॥ अर्थ - दयानिधि सुधर्मसागर भी आचार्य महाराजकी आज्ञाको मस्तकसे स्वीकारकर शेष संघको लेकर ईडरनगर में पहुंचे । सुधर्मसागरस्यान्ते क्षुल्लकाः पंचवर्णिताः । एलकोपि च धर्मज्ञो मुनयोपि त्रयो मताः ॥ १८ ॥ वीर सागरनामान्यः आदिसागर नामभाक् । कुंथु सागरनामाहं एते च मुनयो मताः ॥ १९ ॥ सुमतिसागरो भव्य य आर्यव्रतभूषणः । पार्श्वकीर्तिश्चन्द्र कीर्तिर्गुणज्ञोऽजितकीर्तिकः ॥ २० शुभचन्द्रो नेमिसिंधुः क्षुल्लका' पंचकीर्तिताः । सुधर्मसागरः सर्वैर्वर्षायोगं गृहीतवान् ॥२१॥ अर्थ - सुधर्मसागर के समीप पांच क्षुल्लक थे, एक एल्लक थे और तीन मुनि थे । वीरसागर, मैं कुंथूसागर और आदिसागर ये तीन मुनि थे, सुमतिसागर एलके व्रतोंसे विभूषित थे तथा पार्श्वकीर्ति, चन्द्रकीर्ति, अजितकीर्ति, शुभचन्द्र, नेमि - सागर ये पांच क्षुल्लक थे । इन सबके साथ सुधर्मसागरने वर्षायोग धारण किया | इतश्राचार्यवर्येण क्षुल्लकञ्चाईदासकः । दीक्षितश्च जिनमति सुमतिमति क्षुल्लिके ||२२||

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